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________________ भूधरजेनशतक . ५ शब्दार्थ टीका (विध ) ब्रह्मा क म ( कसतूरि ) मुश्क (दोन ) गरीब (बुरङ्ग) हिर • न मृग ( अनुग्रह ) कपा (दुर्जन ) वैरी (बिसरी) जो वस्तु चित्तसेजा ती रही अर्थात् भूलना। सरलार्थ टीका हैकम वा ब्रह्मा तमसे बडो भूल भई तुम समझे नहीं तुमने कहा क स्तुरी वनाई गरीव हिरनों के शरीर में जो दांत में लण लिये दुवे हैं तु मको दया गहीं आई कि ऐसे दोन जी को पापोजन कस्तूरीके लाल च इतरी कस्तूरी तिनकी जीभ मैं क्यों न करी जो परको दुखदाई रसि क काव्य वनाते हैं यदि ऐसा करते तो दोनों वात साधुअनुग्रश्च और दु जनदंड सिद्ध होजाता तुम्हारी चतुराई काहांगई। सनरूपहस्तोवर्णन - -RRB -~ छप्पै छन्द ज्ञान महावत डार; सुमति सांकल गह खण्डै । गुरु अङ्कुश नहि गिनै, ब्रह्म छत वृक्ष बिहण्ड, । कर सिधान्त सर हानि, केल अधराज सो ठाने। कारण चपजता धरै, कुमति करणी रति माने ।
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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