SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूधरजनशतक [यग ) जस (शेत ) उज्वल ( केत) नवग्रह ( निकर ) समूह-बहुत (निकेत ) घर (बुधजन ) पण्डित ( लोक ) संसार ( अनीति ) अं. न्याय ( पेषये ] देखिये ( विसनराय ] पापोंका राजा ( कौतक) त मांशा सरलार्थ टीका सारे पापों को अवधौ विपत का कारण झगड़े कास्थान कंगले पनका देने वाला येसारी बात अपनी आँखों से दिखाई देती हैं जैसे केतु सूर्य को गुण और उज्जल यश समेत रोके है ऐसे इस जूवे को अवगुणों के स मूह का घर पण्डित लोग देखें हैं जूवे के तुल्य इस लोक में और कोई अन्याय न देखिये इस पापों के राजा के खेल का तमाशा भी देखना उचित नहीं है मांस निषेध कथन छप्प छन्द जङ्गम जी को नास, होय तब मांस कहावै । सपरश आक्रत नाम, गन्ध उर घिन उपजावै । नरक योग निरदई; खांह नर नोच अधरमौ । नामलेत तजदेत' अशन उत्तम कुल करमी ।
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy