SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूधरजनशतक यहअशुबमूलसबबुरो'कमकुलरासनिवासनिता आमिषअभक्षइसकेसदा'वरजोदोषदयालचित५२ शब्दार्थ टीका (सपरश) छूना ( प्राकत ) रूप आकार ( गन्ध ) दुर्गन्ध ( उर] @ दा (धिन ) नफरत (पशन ) भोजन (अशुचमूल ) अशुद्धताकीजड़ (रूम) कोड़ा ( रास) समूह (निवास) स्थान (आमिष) मास (प्रभच ] नहीं खाने योग सरलार्थ टीका पर जीवों का नास होय जब मास कहाता है इस काछना और रूपी र नाम हद में गिन्तानी पैदा करता है नरक के योग निरदई नोच अ धम्मी लोग इमे खाते है और उत्तम कुल सुकम्मौं पुरुष जिस का नाम सुनकर भोजन खाना छोड़ देते हैं यह अभदता की जड़ सारो बस्तुवों से बुरी कोड़ों के कुल के समूह का घर सो मांस अभक्षहे हेदयालु चित इस के दोष सदीय बरजो रोको मदिरा निषेधकथन ------ मिला छन्द कमरासकुबाससरापद है; शुचितासब कूवत जात सही।
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy