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________________ द्वितीय अध्याय भेद के प्रतिपादन के लिये आशयापकर्प का अतिरिक्त वर्णन करना अनिवार्य है। आगयापकर्पजन्य दाह के रोगी आज कल बहुत मिलते है। इन्हे Peripheral Neuritis से पीडित कहा जा सकता है। हस्तपाद दाह Burning Feet Syndrome बहुत से धातुक्षय जन्य रोगो मे यह लक्षण पाया जाता है। यहा पर चिकित्सा मे धातुओ के पूरण के निमित्त वृहण या वायु गामक उपचार ही प्रगस्त रहते है। गीतल या पित्त शामक उपचार उपयोगी नही रहते है। आज के चिकित्सक भी जीवतिक्ति युक्त आहारविहार या औपधि की व्यवस्था करते है। अस्तु, स्थानापर्पज दाह मे वातघ्न चिकित्सा ही करनी चाहिये । वस्तुत वात दोप को परम योगवाहो माना गया है। वह पित्त या कफ से संयुक्त होकर उभय विध लक्षणो को पैदा कर सकता है। जव पित्त से सयुक्त होता है तो दाहादि लक्षणो को और श्लेष्म से सयुक्त होता है तो शैत्यादि लक्षणो को भी रोग मे पैदा कर सकता है योगवाहः परं वायुः संयोगादुभयाथकृत् । दाहकृत्तेजसा युक्तः शीतकृत् सोमसंश्रयात् ।। दाहसंतापमूर्छाः स्युायौ पित्तसमन्विते । शैत्यशोफगुरुत्वानि तस्मिन्नेव कफावृते । दोपों की मार्गानुसार गति-बढे हुए दोष कभी कोष्ठ मे कभी शाखाओ मे और कभी मर्मस्थित सधियो मे अर्थात् कभी वाह्य, कभी मध्य और कभी अत मार्गानुसारी होकर पीडा पहुंचाते है । रोग की साध्यासाध्यता एव चिकित्सा ज्ञान की दृष्टि से रोगोत्पादन प्रक्रिया विविध मार्गों के अनुसार कैसी होती है यह भी जानना आवश्यक है । भिन्न भिन्न कोष्ठ या धातुओ मे दोष की उपस्थिति मे चिकित्सा भिन्न भिन्न होती है । यथा आमाशय कफ का स्थान है । यहाँ पर यदि पित्त या वात दोप विगुण होकर पहुँच जावे और विकार पैदा करे तो उनमे कफ का अनुवध अनिवार्य है । एक वायु दोप का उदाहरण ले यदि आमाशय मे वात दोप पहुँचा है तो चिकित्सा में स्थानस्थ दोप कफ का ध्यान रखते हुए भी स्नेहन कफ का वर्धक होने से अनुचित रहेगा। अस्तु, यहाँ पर कफ के नाशन के लिए रुक्षता एव वात के नाश के लिए स्वेदन करना उत्तम रहेगा । फलितार्थ यह है कि रूप स्वेद करना चाहिए। इसी प्रकार पक्वाशय वात का स्थान है। तद्गत कफ के दोप की शान्ति के लिए वात शामक स्नेहन करके कफ शामक स्वदेन का प्रयोग करना चाहिए । अर्थात् स्निग्ध स्वेद करना चाहिए। आमाशय गते वाते कफे पक्वाशयास्थिते रुक्षपूर्वो हित स्वेद स्नेहपूर्वस्तथैव च । क्योकि स्थान जयेद्धि पूर्व तु स्थानस्थस्याविरोधत ।"
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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