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________________ चतुर्थ खण्ड तैतालीसवाँ अध्याय ६९१ पूर्वे वयसि मध्ये वा तत्प्रयोज्यं जितात्मनः। .. स्निग्धस्य तरक्तस्य विशुद्धस्य च सर्वथा ॥ वा उ. ३९ रसायन-योग आमलकी रसायन-कोटर आदि से -रहित पूर्ण-वीर्य एक पलास के पौधे को चुन लेना चाहिए । इस पौधे के शिर के भाग को काटकर साफ कर ले। पौधे के तने मे दो हाथ गहरा गड्ढा बनाकर उसको नवीन ताजे आँवलो से भर दे । अव पौधे के मूल से लेकर गिर तक कुश से वेष्टित करे, उसके ऊपर से पदमिती-पंक (कमलिनी जिस तालाव या जलाशय मे उत्पन्न हो उसका कीचड) से लेपकर ढक दे । अव जगली गोहरे को जलाकर हवा के झोको से बचाते हुए आंवले का स्वेदन करे । स्विन्न आँवले को रसायन-सेवी मनुष्य घृत और मधु से सयुक्तं कर पेट भर मेवन करे फिर इच्छानुसार ऊपर से गाय का दूध पान करे। इस प्रकार केवल इस आंवले, धृत, मधु एव दुग्ध के आहार पर एक मास तक रहे । रमायन सेवन काल मे स्त्री, मद्य, मास, क्षारादि का सेवन न करे । शीतल जल का सेवन न करे और न शीतल जल का स्पर्श ही करे। इस रसायन सेवन के ग्यारह दिनो पश्चात् मनुष्य के केश, नख और दाँत हिल जाते है या गिर जाते हैं । फिर थोडे दिनो मे उनकी नवीन उत्पत्ति या स्थिरता प्रारम्भ हो जाती है और व्यक्ति के वल, शक्ति आदि क्रमश वढते हुए एक मास के अनन्तर वह स्वरूपवान, शक्तिशाली, वोर्यशाली व्यक्ति हो जाता है । ( अ हृ. र.) आमलकी रसायन-आँवलो का कपडछान चूर्ण २५६ तोले लेवे । इस चूर्ण में ताजे आंवले की इक्कीस भावना देकर छाया में सुखावे । फिर इसमे शहद २५६ तोले, घृत २५६ तोले, छोटी पीपल ३२ तोले तथा मिश्री का चूर्ण २ सेर मिलाकर एक मिट्टी के वर्तन मे वर्षा ऋतु मे राख की ढेर मे गाड कर रख दे । वर्तन के मुख को ढकने से ढंक कर कपड मिट्टी करके बन्द कर देना चाहिये । वर्षा ऋतु के खतम हो जाने पर शरद् ऋतु मे सेवन प्रारम्भ करे। यह एक उत्तम रसायन है । शरीर और मस्तिष्क की क्रिया इसके उपयोग से सुचारु होती है। (भै र ) च्यवनप्राश-यह एक प्रसिद्ध एव श्रेष्ठ रसायन योग है। हरीतकी रसायन-हरीतकी और आमलकी मिलित एक हजार, पिप्पली एक हजार, इनको परिपूर्ण-वीर्य ढाक के क्षार से भावित करके पात्र में रख दे। क्षारोदक के सूख जाने पर इसे छाया में सुखाकर चूर्ण कर ले। इस चूर्ण से चतुर्थाश शर्करा और चौगुना मधु और घृत मिलाकर घृत-लिप्त घट मे भरकर जमीन मे गाड देवे । छ• महीने के पश्चात् इसको निकालकर प्रात काल में
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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