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________________ ६६० सिपकर्म-सिद्धि गुणो को प्राप्त करता है। इसके अतिरिक्त यह भी उदिन मिलती है कि तप, बह्मचर्य, ध्यान एवं प्रगम के द्वारा ही महपि लोग रसायन सेवन के सम्पूर्ण गुणों को प्राप्त करते है। तद्विपरीत आचरण से अमित आयु को प्राप्ति एवं रसायनो के गुण मुलभ नहीं है। " सत्यवादिनमक्रोध निवृत्तं मधमैथुनात् । अहिंसकमनायासं प्रगान्तं प्रियवादिनम् ।। जप-गौचपरं धीरं दाननित्यं तपस्विनम् । देव-गो-ब्राह्मणाचार्य गुल्वृद्धार्चने रतम् ।। समजागरणस्वप्न नित्यं क्षीरघृताशिनम् । देश-काल-प्रमाणनं युक्तिशमनहकृतम् ।। शत्ताचारमसंकीर्णमन्यात्मप्रवणेन्द्रियम् । उपासितारं वृद्वानामास्तिकाना जितात्मनाम् ।। धर्मशास्त्रपर विद्यान्नर नित्यं रसायनम् । गुण रेतैः समुदितैः प्रयुक्ते यो रसायनन् ।। रसायनगुणान् सर्वान् यथोक्तं स समश्नुते । च चि १ तपसा ब्रह्मचर्येण व्यानेन प्रगमेन च ।। रसायनविधानेन कालयुक्तेन चायुपा । स्थिता महर्षयः पूर्व न किञ्चित्तद्रसायनम् ।। ग्राम्याणामन्यकार्याणा सिहत्यप्रयतात्मनाम् । रसायन सेवन की आयु-रमायन का सेवन जितात्मा पुरुष को पूर्व आय (युवावस्था के प्रारम्भ मे) या मध्य-आयु मे अर्थात् चालीस वर्ष की आयु के पन्चात् करना चाहिये । रसायन सेवन के पूर्व व्यक्ति का स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन एवं रक्त विनावण कम ( गोवन) कर लेना आवश्यक है। अत्यन्त वाल्यावस्या एवं वृद्धावस्था के व्यक्ति रसायन के अविकारी नहीं है "जरापक्वगरीरस्य व्यर्थमेव रमायनम् ।" जरावस्था के कारण पक्व शरीर में रसायनो का उपयोग व्यर्थ ही होता है। मस्तु, युवावस्था के प्रारम्भ मे तथा प्रौढावस्था में रसायन सेवन का विधान बतलाग गया है। क्योंकि अत्यन्त वालक और वृद्ध ग्मायन का सेवन सहन नहीं कर पाते । च्यवन ऋपि ने वृद्ध होने पर भी रसायन का जो सेवन किया और नहन किया इसमे उनका तप कारण था । उन सावन का तात्पर्य यह है कि पहले से ही रसायनो का अभ्याम किया जावे तो वह जरावस्था को रोक देता है और इस प्रकार जरावस्था का नाशक होता है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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