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________________ ६६२ - भिपक्म-सिद्धि ----- सेवन करे और निरन्तर पथ्य से रहे। इसके सेवन से सौ वर्ष तक मनुष्य वृद्धावस्था रहित एवं निरोग रहकर जीवित रहता है। त्रिफला लौह रसायन-पिप्पली, त्रिफला, मुलहठी, वशलोचन, सेंधा नमक पृथक् लौह या सुवर्ण इनमे से किसी एक के साथ वच, मधु और घृत मिलाकर अथवा घृत एवं शर्करा के साथ भली प्रकार सेवन करने से यह त्रिफला रसायन सर्वरोगनाशक तथा मेधा, आयु, स्मृति एवं बुद्धि का देनेवाला है । रसायन ओषधियाँ (क) वल्य-विडङ्ग, बला, अतिवला, नागवला, विदारी, शतावरी, वाराहीकन्द, विजयसार, अग्निमन्थ, शणफल आदि द्रव्य । . . . (ख ) मेध्य-श्वेतवाकुची, चित्रक्मूल, मण्डूकपर्णी, ब्राह्मी, हैमवती वचा, विल्व, विस, नीलोत्पल, सुवर्ण, वासा, प्रियङ्गु, पुत्रजीवक, यष्टीमधु आदि द्रव्य । (ग) दिव्य (सौम्य)-सोम, श्वेत कापोती, कृष्ण कापोती, गोनसी, वाराही, कन्या, छत्रा, अतिच्छत्रा, करेणु, मजा, चक्रिका, आदित्यपणिनी, ब्रह्मसुवर्चला, श्रावणी, महाश्रावणी, गोलोमी, अजलोमी, महावेगवती। सोम के अतिरिक्त नोमसदृश वीर्यवाली इन अठारह दिव्य ओपधियो का याख्यान भी सुश्रुतसहिता में पाया जाता है। ये दिव्य दुर्लभ औपवियाँ है, कृतघ्न, पापवर्मा, अथद्धालु एव आलसियो को ये प्राप्त नही होती है। पुण्यकर्मा व्यक्ति नदियो के किनारे, पहाडो पर, तालावो के किनारे, पवित्र जगलो एव आश्रमो में इनका प्रयोग कर लेता है। अस्तु सर्वत्र इनकी खोज मे सदैव लगे रहना चाहिए । सौभाग्य प्राप्त हो जाती है। १. बोपधीना पति सोममुपयुज्य विचक्षण । दगवर्षमहत्राणि नवा धारयते तनुम् ।। (सु चि २९ ) २ सु चि ३० ? वघानरसै कृतघ्न पापकर्मभि । नेवासादयितु शक्या नोमा सोमसमास्तथा ॥ नदीप शैलेपु मर सु चापि पुण्येवण्येषु तथाश्रमेषु । मर्वत्र सर्वा पनिगगितव्या सर्वत्र भूमिहि वसूनि धत्ते ॥ (सु चि ३०)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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