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________________ चतुर्थ खण्ड : तैतालीसवाँ अध्याय ६ कोष्ठ व्यक्ति के लिए जो रसायन योग उचित एव सात्म्य प्रतीत हो उसका सेवन रोगी को करावे। ___अशुद्ध शरीर में रसायन प्रयोग निष्फल-मलिन वस्त्र में दिया हुआ रंग जिस प्रकार बढ़िया कार्य नहीं करता है उसी प्रकार मलिन शरीर मे बिना शोधन किये गये रसायन या वाजीकरण योगो का उत्तम प्रयोग लाभप्रद नही रहता है । अस्तु, रसायन सेवन के पूर्व व्यक्ति का शोवन अवश्य कर लेना चाहिए। सौर्यमारुतिक विधि-इस प्रकार कुटोप्रावेशिक विधि का उल्लेख हुआ। कुटोप्रादेशिक विधि सबके लिए सुलभ नही हो सकती है। यह कुछ सीमित श्रीमन्त, समर्थ, निरोग, बुद्धिमान, निश्चित विचारवाले, नौकर-चाकरयुक्त, घनी-मानी पुरुषो के लिए सम्भव रहता है। जो व्यक्ति धनी-मानी नही फिर भी रसायन योगो के सेवन के अभिलापी है उनके लिए वातातपिक या सौर्यमारतिक विधि से रसायनो का प्रयोग करना चाहिए। वातातपिक अर्थात् वात (वायु, हवा), और आतप (धूप ) मे रहते हुए, घूमते-फिरते रसायन सेवन की विधि । सौर्यमारतिक का भी अर्थ यही है कि सूर्य को धूप मे या मारुत ( हवा) में रहते हुए रसायन का सेवन करना है। यह सामान्य व्यक्तियो के लिए सामान्य विधि है । इसको (Outdoor arrangement for Rasayanas) कह सकते है । यह सर्वजन सुलभ विधान है। परन्तु विशिष्ट विधान कुटी मे प्रवेश करके रसायन सेवन ( Indoor arrangement for Rasayanas) एक विशिष्ट विधि है जो विशिष्ट व्यक्तियो के लिए प्राप्य हो सकती है। आचार रसायन-रसायन सेवन मे कुछ सदाचरणो या विशिष्टाचरणो का अनुपालन आवश्यक होता है। उन्हे आचार रसायन की सज्ञा दो गयी है। उदाहरणार्थ सत्य बोलना, क्रोध न करना, मद्य एवं मैथुन से निवृत्त होना, हिंसा न करना, विश्राम करना, शान्त रहना, प्रिय बोलना, पवित्रता से रहकर जप करना, धीरज धारण करना, नित्य दान एव तप मे लगा रहना, देवी-गौब्राह्मण-आचार्य-गुरु एव वृद्धो की पूजा करना, निष्ठुरता का त्याग, दूसरे के दुःस में करुणा दिखाना, यथोचित मात्रा मे सोना और जागना, नित्य क्षीर तथा घृत का सेवन, देश तथा काल का सम्यक ज्ञान रखना, युक्ति का जानकार होना, अहकार का अभाव, प्रशस्त आचरण, सकीर्ण विचारो को छोडना, अध्यात्मचिन्तन मे मन एव इन्द्रियो का लगाना, वृद्ध, आस्तिक एव जितेन्द्रिय व्यक्तियो की सेवा करना, धर्मशास्त्र के अनुसार नित्य एव नैमित्तिक कर्मों को करना । इन गुणो से युक्त होकर जो व्यक्ति रसायन का सेवन करता है वह सम्पूर्ण रसायन के ४४ भि० सि०
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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