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________________ ६८८ भिपक्कर्म -सिद्धि Indoor treatment तथा वातातपिकको Outdoor treatment कहा जा सकता है | कुटी प्रावेशिक विधि - ग्राम या नगर के पूर्व या उत्तर दिशा में, जिस स्थान पर सभी आवश्यक सामग्री प्राप्त हो सके, जहाँ को भूमि अच्छी हो तथा वातावरण शान्त, गर्द-गुवार और धूम से रहित तथा निर्भय हो एक छोटी-सी कुटी या छोटा सा मकान बनवाना चाहिए। यह घर त्रिगर्भ होना चाहिये । त्रिगर्भ कहने का यह अर्थ है कि मकान के दो खण्ड वाहर रहे और तीसरा मकान उसके बीच में रहे। सभी खण्ड के मकान प्रशस्त होने चाहिएँ । शोर-गुल और अप्रिय शब्द वहाँ नही पहुचना चाहिये । मकान पर्याप्त लम्बा, चौडा और ऊँचा होना चाहिए | मकान को दीवालें मोटी और मजबूत होनी चाहिए, उसमे हवा और प्रकाश की अच्छी व्यवस्था के लिए वातायन ( झरोके ) वने होने चाहिएँ । यह मकान सव ऋतुओ मे सुखप्रद, मन को सुख देने वाला होना चाहिए । उस कुटी मे गम्य स्त्रियो का निपेध हो । मंगलाचार करके पुण्य दिन मे अपने पूज्य देवतादि का पूजन करके, मनशरीर और वाणी को पवित्र करके, ब्रह्मचर्य, धैर्य, श्रद्धा, इन्द्रिय मयम, देवीपासना, दान-दया- सत्यवन तथा धर्म मे लीन रह कर उचित मात्रा में सोने और जागने की क्रिया करते हुए औपधि एवं वैद्य मे प्रीति एवं विश्वास रखकर, अनन्य प्रकार का आहार, विहार और आचरणो का पालन करते हुए रसायन - सेवी मनुष्य कुटी मे प्रवेश करे और रसायन का सेवन प्रारम्भ करे । सर्वप्रथम व्यक्ति का वमन, विरेचन कर्म से सशोधन करना चाहिए । १ शोधन - शोधन के लिए हरीतकी, आंवला, वच, सैन्धव, सोठ, हल्दी, पिप्पली और गुड इनका चूर्ण बनाकर गर्म जल से पिलावे । इससे भली प्रकार विरेचन होकर कोष्ठ शुद्धि हो जाती है । फिर शरीर के शोधन के पश्चात् रोगी का ससर्जन करते हुए तीन, पांच या सात दिनो तक यव की रोटी या दलिया बनाकर घी के साथ पथ्य में देना चाहिए। जब तक पुराने मल का शोधन न हो जावे तब तक यव का भोजन घृत के साथ देना चाहिए । इस प्रकार संस्कृत १ चरक चिकित्सा, प्रथम अध्याय । वाग्भट उत्तरतन्त्र ३९ अध्याय । सुचि ३८ अध्याय । तत. शुद्धशरीराय कृतमंसर्जनाय च। त्रिरात्र पञ्चरात्रं वा सप्ताह वा वृतान्वितम् ॥ दद्याद्यावकमाशुद्धे पुराणगकृतोऽथवा । इत्य मस्कृतकोष्ठस्य रमायनमुपाहरेत् ॥ यस्य यद्योगिकं पश्येत् सर्वमालोच्य सात्म्यवित् । ( अ० हृ० उत्तर तन्त्र ३९ )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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