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________________ चतुर्थ खण्ड : बयालीसवॉ अध्याय ६५६ रहता है। इस प्रकार मोलह वर्ष से लेकर सत्तर वर्ष की आयु तक वाजीकरण या वृष्य योगो के सेवन करने को काल-मर्यादा बताई गई है : सप्तत्यन्त प्रकुर्वात वर्षादूवं तु पोडशात् । न चैव पोडशार्वाक सप्तत्या. परतो न च ॥ आयुष्कामो नरः स्त्रीभिः सयोग कर्तुमर्हति । अकालमरणञ्च स्याद् भजतः स्त्रियमन्यथा ॥ ( यो० र०) आत्मवान् या सदाचारी पुरुपो को ही वाजीकरण सेवन के लिये देना चाहिये । दुरात्मा या दुष्ट व्यक्तियो को नहीं। क्योकि दुरात्मा व्यक्ति वृष्य योगो के सेवन से धातुओ की वृद्धि के कारण कामातुर होकर अगम्या स्त्री के साथ भी गमन करने लगता है-जिसमे लोक मे, समाज में या धर्म की दृष्टि से हानि होती है। अस्तु, पूर्ण विचारवान् व्यक्तियो मे ही वाजीकरण योगो के प्रयोग को मोमित रखना चाहिये । आचार्य सुश्रुत ने लिखा है कि वाजीकरण के उपयोग की आवश्यकता निम्नलिखित व्यक्तियो मे होती है। नीरोग व्यक्ति, तरुणावस्था के व्यक्ति, प्रौढावस्था में रमण को इच्छा रखने वाले व्यक्ति, स्त्रियो मे प्रीति या वाल्लभ्य की चाह वाले व्यक्ति, अति स्त्री प्रसग से शुक्रक्षययुक्त व्यक्ति, क्लोब व्यक्ति ( Impotent ), अल्पशुक्र व्यक्ति, विलासी व्यक्ति, धनी व्यक्ति, रूप एवं युवावस्था से युक्त व्यक्ति तथा बहुत स्त्री वाले व्यक्ति । इन पुरुषो मे वाजीकरण योगो का सेवन हितकर होता है । कल्पस्योदग्रवयसो वाजीकरणसेविनः । सर्वस्वृतुष्वहरहळवायो न निवारितः ॥ स्थविराणा रिरसूना स्त्रीणा वाल्लभ्यमिच्छताम् । योपित्प्रसगात् क्षीणाना क्लीबानामल्परेतसाम् ॥ विलासिनामर्थवता रूपयौवनशालिनाम् । नृणा च बहुभार्याणा योगा वाजीकरा हिता. ॥ (सु चि २६) हिता वाजीकरा योगाः प्रीत्यपत्यबलप्रदा ॥ . सुश्रुत ने क्लैव्य के ६ प्रकार बतलाये है-१ मानस (Psychtological) २ आहारज ( कटु-उष्ण-अम्ल-लवण रस के अधिक खाने से ) ३ वाजीकररहित होकर अतिव्यवायज (शुक्रक्षय को अधिकता से ध्वजभग) ४ मेढ़रोगज शस्त्रच्छेदज ( Traumatic) ५ सहज क्लव्य-जन्म से ही क्लीब होना तथा ६ स्थिर शुक्रनिमित्तज-ब्रह्मचर्य व्रत मे क्षुब्ध मन के निरोप से । उनमे
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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