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________________ = भिषकर्म-सिद्धि बाचार्य सुश्रुन ने लिखा है कि वाजीकरण के मुख्यतया तीन ही लक्ष्य हैं | सद्यः कामतृप्ति के लिये १ स्त्री मे प्रीति पैदा करना २. संतानोत्पादन तथा ३ वल या हर्ष का पैदा करना । देग-वल-काल-व्यक्ति का विचार करते हुए यथावश्यक एवं यथालभ्य इन वाजीकरण के साधनो का सेवन करना चाहिये | सेवन के पूर्व व्यक्ति के मल का शोधन करके तदनन्तर दृष्य योगो का अनुष्ठान करना चाहिये | एते वाजीकरा योगाः प्रीत्यपत्यबलप्रदाः । विशुद्धोपचितदेहैः सेव्या कालाद्यपेक्षया ॥ ( सु. चि. २६ ) वाजीकरण के विपय- अधिक कामी या विषयी पुरुष को नित्य वाजीकरण योगो का सेवन करना चाहिये । पुरुष ही वाजीकरण के सेवन का अधिकारी है । उसी को आवश्यकता भी है । स्त्री और नपुंसक को नही । क्योकि पुरुष सक्रिय होता है स्त्री निष्क्रिय ( Active & Passive ) । दूसरा कारण यह है कि स्त्रियो मे प्रकृति से पुरुपो को अपेक्षा काठ गुना रति को शक्ति होती है. - 'पुग्रहण स्त्रीपण्ढादिनिवृत्त्यर्थम् । पुरुपग्रहण बालात्यन्तवृद्धनिरसनार्थम् । न पुनः स्त्रीपण्डव्युदासार्थम्, तेषा तु वाजीकरणप्राप्तेः इति जेज्जटः ।' पुरुप शब्द के कहने से तरुण पुरुप ( युवक पुरुष ) समझना चाहिये | क्योकि बालको में अर्थात् सोलह वर्ष की आयु के पूर्व अथवा वृद्धो मे अर्थात् सत्तर वर्ष के पञ्चात् वाजीकरण का सेवन व्यर्थ या अकिचित्कर होता है । उक्ति भी पाई जाती है कि अत्यन्त वाल्यावस्था मे मनुष्य के धातु, सम्पूर्णतया बने नही रहते हैं ऐसी आयु में स्त्रीगमन से वह उसी प्रकार सूख जाता है जिस प्रकार तालाब का स्वल्प जल ग्रीष्म ऋतु में सूख जाता है । अस्तु बाल्यावस्था में मंथुन निषिद्ध है । इसी प्रकार रूखा सूखा, घुन लगा और जर्जर पेड जिस प्रकार छूने मात्र से ही गिर जाता है उसी तरह अत्यन्त वृद्ध पुरुष स्त्रीसंग से । अतिबालो ह्यसपूर्ण सर्वधातुः स्त्रियो व्रजन् । उपशुष्येत सहसा ताडागमिव काजलम् ॥ शुष्कं रूक्ष तथा काट जन्तुजग्वं विजर्जरम् । माशु विनीयत तथा वृट्ठस्त्रियो व्रजन् ॥ (च चि. २) योगरत्नाकर ने बाजीकर योगों के सेवन की आयु वतलाते हुए स्पष्टतया लिया है कि सोलह वर्ष की आयु के पूर्व या मत्तर वर्ष की उमर के पश्चात् वाजीकर योगो का उपयोग नहीं करना चाहिये | क्योंकि आयु की चाह रखने वाले व्यक्ति को मोलह के पूर्व या नत्तर वर्ष की आयु के पूर्णतया परित्याग कर देना चाहिये - अन्यथा, करने मे पश्चात् मैथुन कर्म का अकाल-मृत्यु का भय
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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