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________________ ६३० भिषकर्म-सिद्धि योग :० मयन्त्यादि चूर्ण-छाया में सुखाये मेंहदी के वीज या पत्ती का चूर्ण २ भाग और भृगराज के स्वरस में शुद्ध किये गन्धक का १ भाग। दोनो को तीन घण्टे तक मर्दन करके शीगी में भर ले। मात्रा १-२ माशे, जल या सारिवादिहिम के अनुपान से । कण्डु, पामा, फोडे-फुन्सी मे इसका उपयोग उत्तम रहता है। सारिवादि हिम-अनन्तमूल, उशवा, चोपचीनी, मजीठ, गिलोय, धमासा, रक्तचंदन, गुलवनप्सा, खस, गोरखमुण्डी, शाहतरा, कमल के फूल, गुलाब के फूल, गखाहुली प्रत्येक समभाग में लेकर चूर्ण करके रख ले। इसमें १ तोले चूर्ण को रात में छ तोले गर्म जल में मिट्टी या कांच के पात्र में भिगो दे। सवेरे हाथ से मसलकर कपडे से छानकर पीने को दे। फिर उसी वर्त्तन में सुवह ५ तोला गर्म जल डालकर रख छोड़े। उसको गाम को मसलकर कपड़े से छान कर पीने को दे। उपयोग-सब प्रकार के रक्तविकार, कण्डु, पामा, हाथ-पाँव के जलन, जीर्ण ज्वर, अम्लपित्त, रक्त एवं पित्त के विकारो में लाभप्रद रहता है। (मि यो सं.) मंजिष्ठादि काथ (लघु)---मजोठ, हरड, बहेरा, आँवला, फुटकी, वच, देवदार, हरिद्रा और निम्व की छाल इनमे प्रत्येक १ तोला, लेकिन हरीतकी २ तोला ने। जौकुट करके २ तोले द्रव्य को ३२ तोले पानी में खौलाकर ४ तोले गेप रहने पर मधु मिलाकर सेवन करे । मंजिष्ठादि क्वाथ नाम से कई पाठो का मग्रह पाया जाता है जैसे लघु, मध्यम तथा महा । यहाँ पर लघु एव महा मजिष्टादि क्वाथ का वर्णन दिया जा रहा है। महामंजिष्टादि या वृहद् मंजिष्टादि कपाय-मजीठ, नागरमोथा, कुटज, गिलोय, कूठ, सोठ, भारंगी, टोटी कटेरी, वच, नीम की छाल, हल्दी, दारहल्दी, पटोल, कुटकी, मूर्वा, वायविडङ्ग, विजयसार, शाल, गतावर, बायमाण, गोरखमुण्डो, इन्द्रजी, बडूमा, मुंगराज, देवदारु, पाढल, खैर, रक्तचंदन, निशोथ, वरण को छाल, चिरायता, वावची, अमल्ताग, बकायन की छाल, करज, अतीस, सन, इन्द्रायण की जद, धमासा, अनन्तमूल, पित्तपापडा सव समभाग । उपर्युक्त के अनुसार मात्रा निर्माण एवं सेवन विधि । १. मजिष्ठा त्रिफला तिक्ता वचा दारु निगाऽभया । निम्बश्चैव कृत. क्याथ मर्वकृष्टं विनाशयेत् ।।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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