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________________ ६२८ भिपधर्म-सिद्धि तैल के सेवन काल में पथ्य-यदि रोगी केवल गाय के दूध, मोसम्मी, मीठा नीवृ, जनार, सेब, केला, मीन अंगूर मादि मीठे फलों पर रहकर उपयोग करे तो लाम विगेप एवं गीत्र होता है। यदि इस पथ्य पर न रह सके तो उसे पुराने चावल का भात, जौ-गेहूं की रोटी, घृत दोर दूध के साथ न्वावै । अम्ल, लवण, चटपटे और गरम मसालेदार भोजनो का वर्जन करे । नव प्रकार के महाकुष्ठो में इसके लगाने और खाने से वडा लाभ होता है। इस तेल में कपडा भिगोकर व्रण पर बांधने से व्रण गोत्र भरते हैं। १० भल्लातक-गुद्ध भिलावे का उपयोग भी कुष्ठ मे उत्तम पाया गया है। इसके कई योग जैसे 'समृत भल्लातक'; 'भल्लातक गुड' नादि वडे प्रसिद्ध मोर उत्तम योग है, जिनके प्रयोग से कठिन रोगियों में लाभ पहुंचता है । चक्रदत्त का सप्तसमयोग-काली तिल, त्रिफला, त्रिकटु, घृत, मधु, एव शर्करा प्रत्येक १ भाग । मात्रा ३-६ माशे । इसके सेवन काल में क्सिी पथ्य की आवश्यकता नहीं रहती है । यह रसायन है, कुष्ठ में उत्तम लाभ करता है। ११.सुधोदक-चूने के पानी का ३० से ६० बूंद तक पिलाना भी उत्तम रहता है विशेपत. कुष्ठ प्रतिक्रिया (Lepra reactions) में। आधुनिक चिकित्सा में कुष्ठ प्रतिक्रिया 'कैल्दिायम्' का मुख या सूचीवेध के द्वारा प्रयोग उत्तम पाया गया है। १२ किरात--चिरायते का पानी या काढा भी रक्तगोवक होता है । १३ गोरख मुण्डो-का उपयोग भी रक्तगोधन में हिम या अर्क के म्प में करना श्रेष्ठ है। १४ पाताल गन्ही का स्वग्म पीना तथा पत्तियो का वात्य लेप। १५ काष्टोदुम्बर-गास्त्र में कठगूलर को भी पुण्ठन बताया गया है । इसके फई टोटे योग उत्तम लाभप्रद होते है जैसे----गूलर तथा वहेरे की जड की छाल समभाग मे लेकर कुल २ तोले का क्वाथ बनाकर उसमे वाकुची का चूर्ण ४ रत्तो मिलाकर पिलाना । विगेपतः श्वित्रकुष्ठ में लाभप्रद रहता है। - कुष्ठारि योग-कठगूलर, भार्गी, वला, नागवला और अतिवला सबको सम प्रमाण लेकर चूर्ण बना ले । मात्रा ३-६ माशे । मधु से मेवन । गलित, पूय एवं कोट युक्त कुष्ठ में एक मास के उपयोग से पर्याप्त लाभ होता है। १. मुधोदकाञ्च कुष्ठघ्नं विशद्वन्दुमितेन हि । ( भ. र.) २. काष्ठोदुम्बरिकाचूर्ण ब्रह्मदण्डी बलात्रयम् । प्रत्यहं मधुना लीळं वातरक्तापहं नृणाम् ।। तरद्रवत चलन्मासं मासमात्रेण नर्वथा । गलत्यूय पतत्कीटं बिटई सेव्यमीरितम् ।।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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