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________________ चतुर्थं खण्ड : उन्तालीसवॉ अध्याय ६२७ ७. निम्ब-निम्ब एक उत्तम रक्तशोधक ओषधि है। इसके पंचाङ्ग का चूर्ण बना लेना चाहिये । इस चूर्ण के ६ माशे का ६ माशे हरीतकी चूर्ण या ६ माशे आँवले के चूर्ण के साथ सेवन करने से उत्तम लाभ होता है । कुष्ठ के प्रारं. भिक अवस्था मे एक मास के प्रयोग से रोगी को बहुत लाभ होता है । निम्ब के कई योग पंचनिम्बचूर्ण, निम्बादिचूर्ण, बहत् पंचनिम्बादिचूर्ण प्रभृति योगो का उल्लेख आगे किया जा रहा है-इनका प्रयोग भी किया जा सकता है ८. गोमूत्र-सर्व प्रकार के कुष्ठ रोगो मे गोमूत्र एक 'परमौषधि है । इस का उपयोग प्रात काल मे खाली पेट पर एक छटाँक की मात्रा मे कुष्टी को प्रतिदिन करना उत्तम रहता है। इस गोमूत्र के साथ हरीतकी चूर्ण'६ माशे का उपयोग किया जाय तो सफलता और उत्तम मिलती है। अर्थात् उससे निश्चय ही कुष्ठ अच्छा होता है। लम्बे समय तक प्रयोग की आवश्यकता होती है। कुष्ट रोग मे गोमूत्र से स्नान और प्रक्षालन भी उत्तम रहता है। । ९ तुवरक-(चालमोगरा) इसका दूसरा नाम कुष्ठवैरी भी है, जिसका अर्थ होता है कुष्ठ रोग का शत्रु । इसके चूर्ण एव तैल का अन्त. प्रयोग तथा वाह्य योग कण्ठ मे उत्तम कार्य करता है। आधुनिक चिकित्सा मे भी कुष्ठ रोग में 'चालमोगरा तथा 'हिडनोकार्पस' के तेल का सूचीवेध के द्वारा उपयोग उत्तम लाभप्रद प्रमाणित हुआ है । तुवरकाद्य तैल नामक एक योग का, बहुलता से विभिन्न त्वक रोग तथा कुष्ठ मे व्यवहार वैद्यक मे होता है-इसमे तुवरक तैल २ भाग, वाकूची तैल २ भाग तथा चदन का तेल १ भाग की मात्रा मे मिश्रित रहता हैइसका स्थानिक प्रयोग अभ्यग रूप मे होता है। तुवरक तेल मे गधक एवं मोम मिलाकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठजन्य चर्म दोप मे सुधार होता है। तवरक तैल का मुख से प्रयोग की विधि-शुद्ध तुवरक तैल का ५ चूद की मात्रा मे १ तोला मक्खन या दूव को साढी मे रखकर दिन में दो वार देना प्रारंभ करना चाहिये । प्रति चौथे दिन ५ वूद को मात्रा वढावे । रोगी जितनी मात्रा सहन कर सके, उतनी वढावे । जव मात्रा सहन नही होती, तो जी मिचलाने लगता है और वमन भी हो जाता है। जब ऐसा लक्षण होने लगे तो मात्रा घटा देनी चाहिए। रोगी को स्नान करा के इस तैल का अभ्यंग भी कराना चाहिये । अधिक से अधिक मात्रा, जिसे रोगी सहन कर सके उतनी मात्रा, छ मास तक या जब तक रोगी रोगमुक्त न हो जाय तब तक, देता रहे। १ कुष्ठाना विनिवृत्तौ च गोमूत्रं परमौषधम् । अभयासहितं तद्धि - ध्रुव सिद्धिप्रदं मतम् ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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