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________________ प्रथम अध्याय कारो ने बृहद् एव विगद स्वरूप में की है। जैसे श्री चक्रपाणि ने आयुर्वेद दीपिका मे, श्री गगाधर ने जल्पकल्पतरु टोका मे, वाग्भट कृत अष्टाङ्गहृदय मे चरकोक्त गद्य रूप मे वणित पचनिदानसूत्रो का पद्य रूप मे वर्णन पाया जाता है। माधवनिदानकार ने अपने 'माधवनिदान' नामक संग्रह मे वाग्भट के सूत्रो का ही मग्रह पचनिदान की व्याख्या रूप मे किया है। इसके ऊपर अष्टाङ्गहृदय के टीकाकार अरुणदत्त की भी व्याख्या पाई जाती है। इसके अतिरिक्त अष्टाङ्गसग्रह नामक वाग्भट कृत ग्रथ के ऊपर टोका करते हुए शगिलेग्वा टीका मै 'इन्दु' नामक टीकाकार ने भी इस विपय की व्याख्या की है। इसके अलावे शेपाद्रि ने आयुर्वेदरसायन मे तथा विजयरक्षित ने 'मधुकोप' नामक माधवनिदान की टीका मे पत्रनिदान विषय की मागोपाङ्ग विवेचना की है। प्रस्तुत लेख का आधार मूलत श्री विजयरक्षित को व्याख्या हो है। श्री विजयरक्षित ने अन्यान्य कई व्याख्याकारो का उद्धरण अपनी टोका मे दिया है। जैसे, वाप्यचद्र, भट्टारहरिचद्र, तीसटाचार्य, सुदान्त सेन, जेज्जट, कात्तिककुण्ड, ईश्वररोन, गदाधर, आपाढ तपा वर्मदास प्रभृति के नाम विशेपत उल्लेखनीय है। निदानपंचक में विवेच्य विपय एवं उनका प्रयोजन-निदानपचक मे निदान के सावनभूत हेतु, पूर्वरूप, रूप, उपशय तथा सम्प्राप्ति ओर इसमे सम्बद्ध अवान्तर विपयो, निर्दुष्ट लक्षणो का वर्णन पाया जाता है। निर्दुष्ट लक्षण बनाने का तात्पर्य यह होता है कि किसी भी पदार्थ का ऐसा लक्षण वनाना जो अव्याप्ति, अतिव्याप्नि तथा अमभव इन तीनो दोपो से रहित हो । जेसे कहा जाय कि 'मीग वाले जीव गाये है' (शृङ्गित्व गोत्वम् ) तो यह कथन ठीक नही है क्योकि सीग वाले बहुत से जानवर हो सकते है । अत यह लक्षण अतिव्यापक होकर अतिव्याप्ति दोप से युक्त हआ। यदि ऐसे लक्षण करें कि 'काले रग की गाये होती है' ( कृष्णत्व गोत्वम् ), तो यह अपनी जाति मे भी पूरा नहीं हो पाता क्योकि गाये भूरी, सफेद प्रभृति कई रगो की होती है । अत यह अति सकुचित होने से अव्याप्ति दोप से युक्त होगा। फिर गाय का लक्षण बनाते हुए यह कहा जाय कि "एकशफत्व गोत्वम्' ( एक खुर का जानवर गाय है ) सो यह लक्षण पूर्णतया मिथ्या है क्योकि गायो के खुर फटे हुए होते और वे दो खुरो वाली होती है। फलत यह लक्षण असभव दोप से युक्त होगा । अव इन तीनो दोपो से रहित निर्दष्ट लक्षण बनाना हो तो कहेगे 'सास्नादिमत्त्व गोत्वम्' ( गले की लोरको वाले जानवर गायें होती है )। गायो की ग्रीवा से लटकने वाला भाग केवल गायो मे ही पाया जाता और किसी जानवर मे नही, अत यह लक्षण निर्दुष्ट होगा।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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