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________________ के भिपकर्म-सिद्धि वस्तुत लक्षण दो प्रकार के होते है । एक व्यवहार के दिये या काम चलाऊ जैसे कोई पूछे कि 'देवदत्त का घर कौन सा है ?" तो कोई बताने कि वह सामने वाला जिस पर कोवा बैठा है । वही देवदत्त का घर है ( काकवत् देवदत्तम् गृहम् ) । यह लक्षण काम चलाऊ है— उस समय के लिये तो ठीक है, परन्तु कौवा वहाँ से उड जावे और दूसरे मकान के ऊपर बैठ जावे तो लक्षण गलन हो जावेगा । इस प्रकार के लक्षणो को व्यावहारिक लक्षण कहते है । शास्त्रीय लक्षण इस प्रकार के नहीं होते । उन्हें व्यावृत्ति के लिये प्रयोग करना होता और वे स्थायो एव निर्दष्ट ( दोपरहित ) बनाये जाते है । जैसे कि ऊपर वर्णित गाय के लक्षणो से स्पष्ट हो रहा है । अनुमिति नामक न्याय शास्त्र के ग्रथ मे लिखा है कि लक्षण के दो प्रयोजन है -१ व्यावृत्ति और २ व्यवहार । 'व्यावृत्तिर्व्यवहारश्च लक्षणस्य प्रयोजनम् ।' १४ इस प्रकार लक्षणवाद के आधार पर ' पचनिदानो' में लक्षण या परिभाषा 'निदानपचक' नामक विषय मे वैद्य जाता है । फलत प्रस्तुत विषय का सम्बन्ध उनके निर्दुष्ट लक्षणो से ही है । इस प्रकार लक्षणो का प्रयोजन बतलाते हुए शावर भाष्य में एक उक्ति पाई जाती है कि 'पृथक् पृथक् पदार्थो का कथन करते हुए ऋषि लोग भी पदार्थो का अंत नही प्राप्त कर सकते, अत पदार्थो का लक्षण बनाया गया और उसके द्वारा पदार्थसमुदाय को पार करने का प्रयत्न किया गया है ।' ऋपयोऽपि पदार्थानामन्तं यान्ति न पृथक्कश. । लक्षणेन तु सिद्धानामन्तं यान्ति विपश्चितः ॥ * प्रोक्त सजाओ का शास्त्र मे पाया
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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