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________________ भिपकर्म-सिद्धि उपशय कथन का प्रयोजन-'गृढलिङ्ग व्याविमुपगयानपशयाभ्या परीक्षेत ।' गूढ लक्षण वाली व्याधियो का ज्ञान कराने अथवा मदृश लक्षणो से युक्त दो या अनेक व्याधियो मे एक के निर्णय के लिये अथवा अस्पष्ट लक्षणो से युक्त किसी एक ही व्याधि के यथावत् ज्ञान के लिये उपशय का आश्रय लेना अनिवार्य हो जाता है । उपगय कयन से तद्विपरीत अनुप य का भी ग्रहण स्वत हो जाता है। वातव्याधि एव ऊरुस्तभ मे, मधिवात एव आमवात मे तैलाभ्यग के द्वारा, अन्य ज्वरो तथा विपम ज्वरो मे क्विनीन के उपयोग से, विपम ज्वर एव काल ज्वर मे अजन के योगो के उपयोग से कई वार उपशयानुपशय विधि ( Therapeutic methods) से रोग की परीना रोग के यथावत् ज्ञान के लिये आवश्यक हो जाती है। अत रोगो के उपशयानुपशय का कथन करना भी व्याधि विनिश्चय के लिये वाछित है। सम्प्राप्तिकथन प्रयोजन-निदानादि चारो साधनो के कथन के अनन्तर भी चिकित्सा मे सफलता प्राप्त करने के लिये सम्प्राप्ति का कथन अनिवार्य है। क्योकि सम्प्राप्ति कथन के विना १ दोपो की अशारा कल्पना २ व्याधिवल ३ काल का व्याधि के साथ सम्वन्ध का ज्ञान सम्यक् रीति से न होने से विशिष्ट चिकित्सा कर्म का अनुष्ठान सभव न हो सकेगा। १. अशाश-कल्पना-वातादि दोपगत रूक्षता आदि प्रत्येक गुण अश कहे जाते है। दोप के प्रकोपक अशो के निर्धारण को अशाश कल्पना-कहते है । 'तरेकद्विव्यादिभि समस्तेर्वा वातादिकोपावधारणा विकल्पना।' २. व्याधि-बल-रोग की तीव्रता, मध्यबलता या मृदुता का ज्ञान सम्प्राप्ति के द्वारा ही किया जाता है । सकल हेतु, पूर्वरूप, रूपादि की विद्यमानता से व्याधि बलवान्, इनकी मध्य या अल्पवलता से व्याधि का मध्यम या अल्पवल होना पाया जाता है। ३. काल-आवस्थिक काल ( जरा-मध्यमायु-बाल्यावस्था) पऋतु के अनमार, दिन, रात, प्रभात, सध्या आदि के अनुसार व्याधि का बटना-घटना प्रभृति कार्य । उपर्युक। उपपत्तियों के आगर पर रोगविज्ञानोपाय मे वणित हेतु, पूर्वरूप, रूप, उपगय तथा सम्प्राप्ति नामक पाँचो साधनो का कथन व्याधि के सम्यक् रीति से ज्ञान कराने के लिये नितान्त आवश्यक प्रतीत होता है। अत रोगविनिश्चय मे 'निदानपचक' का महत्त्व और उनकी उपादेयता स्पष्ट हो जाती है। निदानपचक प्रसग-निदानपचक विपय का मूल वर्णन चरकमहिता में ज्वरनिदान नामक अध्याय में मिलता है। फिर उसकी व्याख्या कई टीका
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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