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________________ मिपक्षम-सिद्धि अंगघात की अवस्थायें कठिनाई से साध्य होती है। ये रोग दीर्घ काल तक चलते रहते हैं। आचार्य चरक ने लिखा है “संधिच्युति (मधि का वार-बार च्युत होना ), हनुस्तंभ ( Lock jaw), अंगमकोच, कुब्जता, मदित ( Facial paralyeis), पक्षाघात, अगगोप, पंगुत्व, गुल्फ-सधि का वात ( आमवात की एक अवस्थाविप ), स्तंभ, आव्यवात, मज्जा एवं अस्थि के रोग ये रोग बढ़ी गहराई के चातुवो के विकार से पैदा होते है इनकी बडे प्रयत्नपूर्वक चिकित्सा की जाय तो सफलता मिलती और नही मी मिलती है। रोगी यदि वलवान मोर रोग नया या निरुपद्रव हो तव तो सम्यक् उपचार से लाभ की आगा रहती है अन्यथा सफलता की आगा कम रहती है।" __इन कठिन रोगो की चिकित्सा की दुलहता और चिकित्सा की अल्प प्रति किया की दृष्टि से ही यह उक्ति वात रोगो में चलती है कि-'ये वातव्याधियाँ असाध्य है देव-कृपा से अच्छी हो जाती है, इन का वैद्यक (चिकित्सा ) अनुमान से की जाती है और प्रतिज्ञा करके नहीं' रोग के अच्छा होने की गारंटी पहले से ही नहीं दी जा सकती है। पक्षवध में क्रियाक्रम (Upper Motor Neurone ty peof Paralysis)-पक्षाघात के रोगी में तीक्ष्ण विरेचन तथा वस्ति क्रिया द्वारा शोधन कराने से रोग गान्त होता है। पक्षाघात के रोगियों में पौष्टिक आहार देना चाहिये । इस के लिये-वला की जट का क्वाथ या बृहत् पंचमूल या दगमूल के द्रव्यो के क्वाथ के साथ बकरे का सिर ( Brain), जलीय प्राणियो ( मत्स्यादि ) के मास अथवा आनूपदेश के प्राणियो के मास अथवा मासभक्षक प्राणियो के मास पकाकर उस को छान कर रस निकाल कर देना चाहिये। इस मांसरस को घृत से छोक कर दही, काजी और निकटु चूर्ण ( मोठ, मिर्च, पिप्पली ) तथा नमक मिलाकर स्वादिष्ट १. सन्धिच्युतिहनुस्तम्भः कुञ्चन कुजतादित. । पक्षाघातोऽङ्गसंशोप पद्भुत्व खुटवातता । स्तम्भनं चाट्यवातश्च रोगा मज्जास्थिगाश्च ये । एते स्थानस्य गाम्भीर्याद् यत्लासिद्ध्यन्ति वा न वा । नवान् वलवतस्त्वंतान साधयेन्निरूपवान् ॥ (च. चि. २८) २. वातरोगस्त्वसाध्योज्यं दैवयोगेन सिद्धयति । __ मनुमानेन कुर्वन्ति वैधक न प्रतिज्ञया ।। (यो. र ) ३. पक्षाघातसमानान्तं सुतीक्ष्णश्च विरेचतः । शोधयेद्वस्तिभिश्चापि व्याधिरेबं प्रशाम्यति ।। ( भा. प्र.)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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