SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 531
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ खण्ड : पचीसवाँ अध्याय ४८१ विश्वाची तथा अववाहुक-दशमूल-बला एवं माप का क्वाथ बनाकर तिल और घी मिलाकर पीना तथा इसी का नस्य लेना लाभ करता है। माप ( उडद) और लहसुन से सिद्ध तेल का अभ्यंग वाहु पर करना भी लाभप्रद रहता है।' क्ला के मूल किंवा नीम की पत्ती का स्वरस अथवा केवाच का स्वरस या क्वाथ बनाकर पीने या नस्य लेने से वज्र के समान वाहु हो जाता है । त्रिकशूल, कटिशूल और संधिवात में-गृध्रसी के समान सम्पूर्ण उपचार करना चाहिये । स्वेदन के लिए बालुका को पोटली मे बांधकर गरम करके अथवा करीपाग्नि ( कण्डेको आग बनाकर ) उससे सेंकना चाहिये । सर्वत्र कैशोर गुग्गुलु १ माशा और गोक्षुरादि गुग्गुलु १ माशा मिलाकर गर्म जल से दिन में दो बार देना रात्रि में सोते वक्त वैश्वानर चूर्ण ६ माशा देना और पंचगण तेल की मालिश कराना लाभप्रद रहता है। इन रोगो में कोष्ठशुद्धि का विशेष ध्यान रखना चाहिये । इस के लिए बीच-बीच मे आस्थापन वस्ति देकर कोष्ठ शुद्ध कर लेना चाहिये। इसके अतिरिक्त त्रिफला और गुडूची का कषाय अनुपान रूप मे देकर अथवा दूध मे १ छटांक एरण्ड तैल देकर सप्ताह मे एक बार रेचन करा देना चाहिये । दूध के साथ वृद्धदारुक वीज का सेवन भी लाभप्रद रहता है। पक्षाघात-प्रतिषेध-अगघात या अगवध चार प्रकार का हो सकता है। जैसे १ एकाङ्गघात ( Monoplagia.), पक्षवध या अर्धाङ्गघात (Hemiplegia) ३ सर्वाङ्गघात ( Diplagia ) ४ अधराङ्गघात ( Paraplagia ) इसमे खञ्जत्व और पद्भुत्व दो आता है। इन चारो प्रकारो में चिकित्सा प्रायः एक सदृश ही होती है । १. मापतैलरसोनाम्या बाह्वोश्च परिवर्तनात् । दशाध्रिमापक्वाथेन जयेद् वैद्योऽववाहुकम् ।। दशमूलीवलामाषक्वाथं तैलाज्यमिश्रितम् । साय भुक्त्वा चरेन्नस्यं विश्वाच्या चावबाहुके ॥ ( भै र ) २ गुग्गुलु क्रोष्टुशीर्पञ्च गुडूचीत्रिफलाम्भसा। क्षीरेणैरण्डतलं वा पिवेद्वा वृद्धदारुकम् ॥ ३ हत्वैकं मारुतः पक्ष दक्षिण वाममेव वा। कुर्याच्चेष्टानिवृत्तिं हि रुजं पाकस्तम्भमेव च ॥ गृहीत्वाचं शरीरस्य सिरास्नायू विशोज्य च । पादं संकोचयत्येकं हस्त वा तोदशूलकृत् ॥ एकाङ्गरोग त विद्यात् सर्वाङ्गं सर्वदेहजम् ॥ ३१ भि० सि०
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy