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________________ चतुर्थ खण्ड · पचीसवाँ अध्याय ४६३ भाग में लेकर काजी में पीस कर गर्म करके सुहाता-सुहाता लेप कर वेदना और गोय का शामक होता है।' शाल्वण स्वेद-काकोत्यादि गण की गोपधिया, २ भद्रदादि गण की औपधिया ( 3 वातघ्न गण को वाग्भटोक्त औपधिया ) सर्व प्रकार के अम्ल द्रव्य, मानपदेश के प्राणियो के मास, मब प्रकार के स्नेह और लवण-इनका यथोचित मात्रा मे बघालाभ लेकर अच्छी प्रकार से पीस के आग. पर पानी मिलाकर चटाकर पकाले । वातरोगियो मे पीडा के स्थान पर इसका उपनाह या पुल्टिन बाधनो चाहिये । इनमें काकोल्यादि गण की औषधिया १ भाग, भद्रदादि गण को मोपधिया १ भाग, मास २ भाग । अम्ल वर्ग की ओपधिया उतनी हो जितने में लम्लता माजावे, जितने स्नेह से स्निग्यता आ जाये उतना स्नेह और जितने लवण से लेप में नमकीनपन आ जाये उतना लवण छोडना चाहिये । इस उपनाह को अग पर लगा कर रुई रख कर कपडे से वाध देना चाहिये। गण को मोपधियो मे यथालाभ ( जितनी मिल जाय उतनी ) उपयोग करने का नियम सर्वत्र समझना चाहिये । फलत इस योग में भी वर्गोक्त समस्त, आधी या जितनी मिल सके, उतनी ही भोपधियो का प्रयोग करना चाहिये। यह एक उत्तम लाभप्रद प्रक्रिया वात रोग में प्रख्यात है। वातहा पोटली-चक्रमर्द बीज, एरण्डमूल, महानिम्ब, निम्ब की छाल, बकुल की छाल, कटुकरज की छाल, नारिकेल के फल की मज्जा, पतिकरज की छाल, कपास वीज, सहिजन को छाल, पोस्ता की डोड़ी, सुनिपण्णक (तिनपतिया), सर्पप, अकोल बीज ( ढेरे का फल ), रास्ना, कूठ, कुलथी, तिल (काली), वच, लहसुन, हींग, सफेद सरसो, सोठ इनका पानी में पिसा कल्क, घृत और तिलतल और सरसो का तेल मिलाकर कपडे मे वाधकर पोटली जैसे बनाकर सेंकना । वात रोगो मे परम वेदनाशामक उपनाह है ।-( योगसार से उद्धृत )... १ कोल कुलत्यामरदाररास्नामापातसीतैलर्फलानि कुष्ठम् । वचा शताह्वा यवचूर्णमम्लमुष्णानि वातामयिना प्रदेहः ॥ २ काकोल्यादि गण-काकोली, क्षोरकाकोली, जोवक, ऋषभक, मुद्गपर्णी, मेदा, महामेदा, छिन्नरुहा, कर्कटशृङ्गो, तुगाक्षीरी, पद्मक, प्रपौण्डरीक, ऋद्धि, वृद्धि, जीवन्ती, मृद्वीका मधुकञ्च । (सु सू ३८) ३ भद्रदारुनिशे भाी वरुणो मेषगिका। जटा झिण्टी चार्तगलो वरा गोक्षरतण्डुला । अर्को श्वद्रष्ट्रा राजिका धुस्तूरश्वाश्मभेदक । वरी स्थिरा पाटला रुग्वभिर्वसुको यव । भद्रदादिरित्येष गणो वातविनाशनः ॥ ( वा सू १०) ४ अम्ल द्रव्य से यहा पर काजी का ग्रहण करना चाहिये। "
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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