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________________ ४६४ · भिपकर्म-सिद्धि । तैल द्रोणी या कांजिक द्रोणी-अवगाहन-द्रोणी के आकार के पात्र अथवा नाद ( Tub) मे तैल ( तिल सर्पप कुसुम्भ आदि का यथालाभ मिश्रित तैल ) भर कर या काजी भर कर उसमे रोगी को बैठाना और उसमे सिर के ऊपर तैल या कांजी से किसी पात्र से स्नान कराना या डुबकी लगा कर नहलाना वात रोगो मे लाभप्रद रहता है। इसका प्रयोग पक्षवध, अदित, मन्यस्तिंभ तथा अपतानक मे लाभप्रद पाया जाता है। अभ्यंगार्थ-तैल माष तेल-(चक्रदत्त) पाकार्थ तिल तेल ४ सेर । उडद ४ सेर, बला ४ सेर, जल ६४ सेर क्वाथ बनाकर अवशेष १६ सेर । उडद, केवाछ के बीज, अतीस, एरण्ड की जड, रास्ना, सौंफ और सेधा नमक-सव का सम भाग में वना कर कल्क १ सेर । यथाविधि मद आंच पर पका कर सिद्ध करे। यह तैल-मालिग, नस्य और पीने से पक्षवध मे लाभप्रद होता है। महामाप तैल-उडद १२८ तोले, दशमूल की औपधियाँ २३ सेर, बकरे का मास १॥ सेर, जल १२ सेर १२ छटाक ४ तोले । सव को लेकर बडे भाण्ड मे अग्नि पर चढा कर क्वाथ करे, जब चतुर्थांश शेप रहे तो ठंडा होने पर छान ले। फिर एक बडे कडाही मे तिल तेल १ सेर, दूब ४ सेर तथा निम्न औपधियो का कल्क बना कर मद आंच पर पाक करे। कपिकच्छु का बीज, एरण्डमूल, सौफ, सेंधानमक, कालानमक, विडनमक, जीवक, 'ऋपभक, काकोलो, क्षोरकाकोली, मैदा, महामेदा, ऋद्धि, वृद्धि, मुलेठी, मुद्गपर्णी, मापपर्णी, मजिष्टा, चव्य, चित्रक को जड, कायफल, सोठ, मरिच, पिप्पली, पिपरामूल, रास्ना, देवदार, गिलोय, कूठ, असगध, बच, कचूर तथा कपूर प्रत्येक १ तोला । सव को जल के साथ पीस कर कल्क बना कर पाक करे । इस तेल को उष्ण दूध में १-२ तोला मिलाकर पीना, वस्ति देना । मात्रा ४ तोला, अभ्यग करना, नस्य लेना और कानो में छोडना । पक्षाघात, अदित, खज और पंगुत्व में लाभप्रद । निरामिप महामाप तैल-निरामिप भोजियो मे मास का प्रक्षेप न करते हुए तेल का पाक कर लेना चाहिये। मापवलादि तैल-तिल तैलं ४ सेर । क्वांथार्थ-उडद २ सेर, जल १६ सेर, शेप जल ४ सेर, दगमल की सम भाग में गहीत मोपवियाँ २ सेर, जल १६ सर, १ मापात्मगुप्ताऽतिविपोरुबूक-रास्नाशताहालवर्ण. प्रपिष्ट । चतुर्गुणे मापवलाकपाये तेल कृतं हन्ति च पक्षघातम् ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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