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________________ ४६२ भिपहम-सिद्धि त्र्यिाक्रम-सामान्य-अम्बंग, स्वेदन कस्ति, स्निस्व नस्य, स्निन्ध विरेचन, निध-अम्ल लवण और मधुर रस पहाणे का सेवन', पित्त के बावरण में गीत और उग उपचार, कफ या मेद या बाम के आवरण में रूम-उप्ण भय तथा भेपज देना चाहिये । यदि विशुद्ध गयु का ही कोप हो तो सर्वत्र स्निग्ध एवं उष्ण भय एव भेषज का उपयोग करना चाहिये। स्निग्ध, उष्ण-गोत-स्मादि उपक्रमो ने यदि वायु का रोग न गान्त हो तो रोग में रक्त को दुष्टि समझनी चाहिएऔर वहा पर वायु की चिकित्सा के साथ ही रक्तगोधक उपचार भी करना उत्तम रहता है । विगुद्ध वात के रोगी में प्रायः बृहण चिकित्मा का ही विधान जैसा कि चक्रटन मे लिखा है "घो-तैल-वसा-मज्जा का पान, अभ्यंग तथा वस्ति, सिध स्वेदन, वात के झोनो ने रहित (निवात) स्थान, गर्म वस्त्रो से शरीर को आवृत रखना, मामरस, दूध, मधुर, खट्टे और नमकीन पदार्थ तथा शरीर के वृहा करने वाले पदार्थों का उपयोग हितकर होता है । . वातघ्न लेप-जुदन का गोद २० तोला, आमाहल्दी ४ तोला, सज्जीखार २ तोला, एलवा ( मुमबर ) ५ तोला, हीरा वोल २ तोला, आर्चा २ तोला, गेरू ५ तोला, मफेद मरमो १ तोला, हीग १ तोला,, उगारे रेवन्द एक तोला, यजन्त तोला, डीकामाली का गोट २ तोला, मेदा लकडी २ तोला, चन्दसूर (चनूर हालीम ) ४ तोला, मेयी २ तोला । इन सब का चूर्ण बना कर रख ले। उपयोग-आवश्यकतानुसार जल में महीन पीस कर गर्म करके जहाँ पर चोट लगी हो या वेदना हो वहाँ पर मोटा लेप कर ऊपर से ई रख कर वाच दे। इससे पीडा और मूजन शान्त होती है । प्रदेह-जंगली वेर, कुलघी, देवदार, रास्ना, उडद, अतसी का वीज तथा नेल, त्रिफला, कूठ, वत्र, सोये का बीज और जौ का माटा। इन द्रव्यो को नम १. अन्यङ्ग स्वेदनं वस्तिनस्यं स्नेहविरेचनम् । स्निग्धाम्ललवण स्वादु बृप्यं वातामयापहम् ॥ पित्तस्यावरणे वातेरोगे गीतोष्णभेषजम् । कफस्यावरणे वायो लोण भक्ष्यभेषजम् ॥ केवले पवने व्यावी स्निग्योष्णं भवभेण्जम् । स्निग्योष्णगोतन्क्षायतिनो यो न शाम्यति । विकारस्तत्र विजेयो दुष्टगोणितसंभव. ॥ २. मपिस्तन्दसामज्जपानान्यञ्जनवस्तय. । स्वेदाः स्निग्या निवातञ्च स्थानं शावरणानि च ॥ रमा पयासि भोज्यानि स्वान्ललवणानि च । बृहणं यत्त तत्सर्व कर्तव्यं वातरोगिणाम् ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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