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________________ चतुर्थ खण्ड: पचीसवाँ अध्याय ४६१ नही पैदा हो रही है, वह मनुष्य को या जीवधारी को नीरोग रख कर सैकडो वर्ष तक जीवित रख सकता है, परन्तु विपरीत होने से प्राण को सकट मे डाल देता है । वह अपने प्राण उदान-समान-अपान तथा व्यान भेद से पचधा विभक्त होकर शरीर का धारण करता है । इस प्रकार वायु के प्रधान धातु या दोष होने के कारण वात रोगाध्याय नामक स्वतंत्र अध्याय लिखने की आवश्यकता शास्त्रकारो को प्रतीत हुई ।' जो कुछ भी श्वास-प्रश्वास, आँखो के पलको का खुलना या बंद होना, आकुंचन, प्रसारण, प्रेरण, सधारण तथा संवेदन आदि क्रियायें होती है, वायु के कारण ही होती है । अव पुन शंका उठती है कि वायु से आधुनिक परिभाषा मे हम क्या समझें? संक्षेप मे उपर्युक्त वर्णन से शरीरगत कोई भी तत्त्व जो सचालन ( Motor Function ) कराता है या संवेदन कराता है अर्थात् वेदनाओ की सूचना ( Seusory furction ) देता है उस शक्ति विशेष को बात कहते है । इन सम्पूर्ण शक्तियो का अधिपति वात संस्थान ( Nevvous Lisshes or Brani & Neues ) है । अस्तु, वात धातु से इन्ही का ग्रहण करना सगत प्रतीत होता है । अस्तु, वात रोगाध्याय कहने का तात्पर्य ( Diseases or the Nervdussystelu ) वात नाडी संस्थान का रोग समझना समीचीन है । • वायु के कारण विविध प्रकार के रोग होते हैं, फलत इस अध्याय में बहुत प्रकार के रोगो का प्रसंग आयेगा । प्रसंगानुसार उनके क्रिया क्रमो का भी एकका उल्लेख किया जावेगा । चिकित्सा मे कुछ सामान्य बातो का ध्यान अवश्य रखना चाहिये । जैसे वायु का कोप दो प्रकार से होता है-धातुक्षय से या मार्ग के आवृत होने से । “वायोर्धातोः क्षयात्कोपो मार्गस्यावरणेन वा ।" अधिकतर वायु के रोग प्रथम वर्ग के अर्थात् धातुक्षयजन्य ही पाये जाते है । अस्तु, सामान्यतया वृंहण उपक्रमो का ही ध्यान रखना चाहिये । १. वायुरायुर्बलं वायुर्वायुर्धाता शरीरिणाम् । वायुविश्वमिदं सर्वं प्रभुर्वायुश्च कीर्तित ॥ अव्याहता गतिर्यस्य स्थानस्थ प्रकृतौ स्थित । वायु स्यात्सोऽधिकं जीवेद्वीतरोगः समा. शतम् ॥ प्राणोदानसमानाख्यख्यानापान स पञ्चधा । देह तत्रयते सम्यक् स्थानेष्वव्याहतं चरन् ॥ विमार्गस्था स्वस्थानकर्मजे । शरीरं पीडयन्त्येते प्राणानाशु हरन्ति च ॥ ह्ययुक्ता वा रोगे - ( च० चि०१६ )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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