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________________ ३१४ भिपधर्म-सिद्धि १२ काम्पिल्लक चूर्ण-(शुद्ध कवीले का चूर्ण) १ से २ मागे की मात्रा में गुडके माथ मिलाकर सेवन करने से उदरस्थ मभी कृमियो को निकाल देता है। इसका प्रयोग बच्चो के वृमि रोग में विगेपत. पुरीपज कृमि (Thread worms) में लाभप्रद होता है। १३ किरमाणी अजवायन चूर्ण-2 माशे से ३ मागे तक गुड के साथ मेवन गण्डूपद कृमि मे विनेप लाभप्रद होता है। माधुनिक युग में इसका सत्त्व किरमाणी अजवायन मत्त्व ( Santonin ) के नाम से आता है। इसको मात्रा १ से ३ ग्रेन की होती है । गण्डूपद कृमियो मे (Round worms) मे विशिष्ट (Specific ) रूप में प्रयुक्त होता है। प्रयोग विधि-सैण्टोनीन मे कैलोमल तथा सोटादाय कार्य मिलाकर एक मिश्रण (Santonin t to 1 grain, Calomel i to 1 grain, sodi Bicarb 3to 5 grains) वनाकर । सायकाल में रोगी को एक एक घटे के अतर मे तीन पुदिया खिला दे। फिर प्रात. काल मे सामुद्रेचन (Sodi sulph or Magsulph ४ ड्राम से १ मांस तक ) को पानी में घोल कर पिलावे इसमे रेचन होकर उदरस्थ कृमि मूच्छित हो गये रहते है दस्त के साथ वाहर निकल जाते है। __१४ स्वर्णझीरोवीज-स्वर्णक्षीरी की जड़ की छाल का करक ३ माशे मरिच ५ दाने के साथ या वीज का तेल मभी कृमियो विशेपत अकुश मुख कृमियो मे लाभप्रट पाया गया है । आजकल एताहग औपधि का प्रयोग Hexyiresorsinol नाम से बहुतायन मे होता है 1 Crystoids (sharp & Dhome) वना बनाया कैपस्पुल में भरा पाया जाता है। इस सोपवि को कम विपात माना जाता है। पांच कंपस्युल एक ही साथ शीतल जल के माय प्रात. काल में रोगी को निगलवा दिया जाता है। पञ्चात् तीन या चार घटे के अनन्तर उमको मोडा मल्क १ मीम जल में घोल कर पिला दिया जाता है जिसमे रेचन हो जाय । इनो प्रयोग से धीरे धीरे कृमियो का तथा उनके मण्डो का निकलना प्रारभ होता है और दम दिनो तक निकलते रहते है। इसका उपयोग निरापट माना जाता है। १५ आखुपी या मृपाकर्णी-आम्बुपर्णो को जी के आटे में पीसकर पीटी बनाकर नेल मे नलकर भाजी के माथ पीने से कृमि नष्ट होते हैं । १६ मुरमादि गण-कृष्ण तथा श्वेत तुलसी, मम्बक (मख्या), अर्जक, भूस्तृण (रोहिन तृण ), मुगवक (गंवतृण), मुमुख (तुलसी भेद ), कृष्णार्जक (कार माल ), कानमर्द, आवक (नकठिकनी ), खरपुप्पा (बन
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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