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________________ चतुर्थ खण्ड : दसवाँ अध्याय वर्वरिका ) विडङ्ग, कटफल, निर्गुण्डी, मुण्डी, मूपाकर्णी, भारंगी, काकजघा, काकमाची, कुपीलु ( कुचिला ) । इस गण की प्रत्येक औपवि स्वतंत्रतया कृमिघ्न है। इनमे कईयो का उल्लेख ऊपर मे हो चुका है। दवना या मरूवा विशेष उल्लेखनीय है। इनमे से किसी एक का ताजा रस ३ से १ तोला मधु से सेवन कराने से बालको मे गण्डूपद तथा सूत्र कृमियो मे लाभप्रद होता है। १७ दाडिम बीज-अनारदाने का बीज सामान्यतया कृमि रोग मे व्यवहृत होता है । इसका विशेष प्रयोग स्फीत कृमि (Tape worms) मे होता है। Palhtrin Tannet नाम इसका एक विशेप योग आता है जो इस अवस्था मे उत्तम लाभ प्रद पाया जाता है। १८ गंधवास्तूक-बथुवे की एक जाति गधवास्तूक नाम से पाई जाती है । इसके बीज कृमिघ्न होते है। इन वीजो से एक तैल गधवास्तूक तैल ( Oil chenapodium ) बनता है, इसका उपयोग विशेष अकुशमुख कृमियो में लाभप्रद पाया जाता है । मात्रा १० बूद । प्रयोग कैपरयूल मे भर कर दस वू द खिला देना चाहिये । एक घटे के पश्चात् समुद्रेचन ( Mag sulph or sodi sulph ) देकर रेचन करा देना चाहिये। इन वानस्पतिक द्रव्यो के अतिरिक्त अन्य कई रासायनिक द्रव्य भी कृमि चिकित्सा मे व्यवहृत होते है । जैसे-१९ कार्वन टेट्रावलोरायड या कार्बन टेट्रा क्लोरेथीलीन । मात्रा ३० ने Tetra cap नाम से १० ग्रेन को मात्रा के कैपस्युल बने बनाये बाजार में उपलब्ध है। इनका यथावश्यक रोगी के बल के अनुसार दो या तीन कैपस्युल पानी से निगलवा देना चाहिये। फिर दो घटे के वाद सामुद्रेचन देकर रोगी का रेचन करा देना चाहिये। कृमियाँ तथा उनके के अण्डे सभी बाहर निकल जाते है । यह औपवि विशेप कर अकुशमुख कृमि मे लाभप्रद रहती हैं । एक मिश्रण का प्रयोग अकुशमुख कृमि के रोगियो मे वडा लाभप्रद पाया गया है । कृमिन्न मिश्रण-गंधवास्तूक तैल (Oil chenapodium) १० वूद, कार्बन टेट्राक्लोरायड (Carbon tetra chloride XXXms) ३० वूद तथा सामुद्रेचन ( Magsulph) ६ ड्राम तथा जल २ औस । यह एक तीन औषधि प्रयोग है, रोगी को आत्मनिरीक्षण मे रख कर देना चाहिये । रेचन न हो तो पुन समुद्रेच ४ ड्राम पानी में घोल कर देना चाहिये । २० जेन्शियन वायलेट-(Jentian Voilet) इसके भी बने योग बाजार मे मिलते है। यह औपधि गण्डुपद कृमियो मे विशेष रूप से कार्य करती है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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