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________________ ११४ भियकर्म-सिद्धि जिस व्यक्ति का स्वेदन करना हो उसका वातघ्न तेलो से अभ्यंग करा के कपड़े में पूरे गरीर को आच्छादित करके प्रवेश करावे । उसे इस बात से पूरी तरह से मागाह कर दे कि वह इस स्वेदन-गृह में अपने कल्याण और आरोग्य लाभ के लिए जा रहा है। पिण्डिका पर चढ कर मुखपूर्वक स्वेदन करे। मुखपूर्वक पिण्डिका पर विवरे और लेटे। लेट कर सुखपूर्वक एक करवट या दूसरी करवट से अपने को मेंके। परन्तु पिण्डिका का परित्याग न करे। स्वेद और मूी से बेचैन होने पर भी जब तक प्राण हो पिण्डिका के नीचे नहीं उतरे पिण्डिका के ऊपर ही रहे। पिण्डिका के छोड़ देने पर या नीचे ना जाने पर दरवाजे तक नहीं जा सकेगा और मूटित हो जावेगा और जीवन से भी हाथ धोना पडेगा । इस लिए पिण्डिका को नहीं छोड़े। जब उसे यह प्रतीत होने लगे कि उसका अभियन्द्र या भारीपन (Congesthon ) दूर हो गया, मभी त्रोत खुल गए, सम्यक् प्रकार से स्वेद-विन्दुओ ना त्राव हो गया, उसका गरीर हका हो गया, उसके गरीर का विवन्ध, स्तम्भ ( जकडाहट), सुन्नता, वेदना मोर भारीपन दूर हो गया तो वह पिण्डिका का ही अनुसरण करते हुए दरवाजे से गहर निकले । वहाँ से बाहर आकर नेत्रो की रक्षा के लिए सहसा पीतल जल का स्पर्श न करे। थोडी देर तक या जब तक उसका ताप, थकावट बार पसीना गान्त न हो जाय विश्राम करे । पश्चात् मुखोष्ण ( गुनगुने पानी से स्नान करे तदनन्तर भोजन करे। ८ अश्मयन स्वेद :-पुरुप के प्रमाण की एक लम्बी, मोटी और चौडी गिला, (पत्यर को गिला) को वातघ्न लक्रडियो को जला कर उसके भीतर छोड कर, अंगारो से तप्त करके, पुन अगारो को पृथक् करके गिला को निकाले । फिर इस गिला का गर्म जल से प्रोक्षण करके अर्थात् गिला पर गर्म जल डाल कर उसके ऊपर मण्डी की चादर या कम्बल विठा कर उसके ऊपर अच्छी प्रकार से अन्यंग किये व्यक्ति को लेटा कर स्वेदन करावे । इस स्वेदन वाले व्यक्ति का भी गरीर मूती, ऊनी या रेगमी वस्त्र से ढका होना चाहिए । इस स्वेदन विधि को नरमपन स्वेदन कहते है । इसको गिलास्वेद भी कह सक्ते है । ६ कर्प स्वेद : मोने के लिए बनो चारपाई के नीचे एक गड्ढा खोदे, जिनका मुख छोटा किन्तु अन्दर का पेट बड़ा हो, उसमें निम अङ्गारो को डाल कर उसे भर दे, पुनः व्यक्ति को चारपाई के ऊपर सुला कर उसका सुख पूर्वक स्वेदन करावे। १० कुटी-स्वेद:-अल्प प्रमाण की ऊंचाई, वहुत मोटी दीवाल की जिसमें खिडकियाँ न हो तथा जिसका विस्तार, लम्बाई, चौड़ाई सो अधिक न
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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