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________________ द्वितीय खण्ड : प्रथम अध्याय ११५ हो, ऐसी एक गोलाकार कुटो वनावे | इसके दीवाल की अगर प्रभृति सुगन्धित और उष्ण द्रव्यो से पुताई करा दे । कुटी के बीच मे एक स्वास्तीर्ण बिस्तर जिसमे सुखपूर्वक सोया जा सके ऐसा बिस्तर लगावे । इस शय्या के बिस्तर के ऊपर मृगचर्म, कम्वल, कुशा की चटाई, अण्डी के वस्त्र प्रभृति उष्ण कपडे होने चाहिए | कुटी के चारो ओर दीवाल के सम्पर्क मे निर्धूम जलते अंगारो की कई अगोठियाँ रख दी जाती है । अभ्यक्त शरीर हो, स्वेदन के योग्य व्यक्ति का प्रवेश करा के उस गय्या पर लेटा कर सुखपूर्वक स्वेदन कराना चाहिए । इस स्वेद-कुटी का प्रवन्ध प्रगस्त, निवात और सममूमि मे करना चाहिए । --- ११ कुम्भी स्वेद - वातघ्न क्वाथो से भरे हुए घट को जमीन मे गड्ढा करके स्थिर कर दे । उसके ऊपर चारपाई लगा दे । चारपाई इस प्रकार लगावे कि घडे के टूटने का भय न हो । उसके ऊपर चारपाई का आधा या तिहाई भाग रहे । चारपाई के ऊपर एक हलका या पतला विस्तर होना चाहिए। इसके ऊपर स्वेदन वाला व्यक्ति सकुचित अंग होकर तेल का अभ्यग करके लेट जाये । अब इस घड़े मे तप्त किए लोहे के टुकडे या पत्थर के टुकडे छोडे । इसके वाप से व्यक्ति का भले प्रकार से स्वेदन हो जाता है । १२ कूप स्वेद : -- कूप या कुवे के आकार का कुछ गहराई का एक गड्ढा बनावे जिसका विस्तार सामान्य कुओ से द्विगुण हो या जिसकी लम्बाई, चौडाई इतनी हो कि उसके ऊपर सोने का आसन लगाया जा सके । इस कुएँ का निर्माण प्रशस्त भूमि मे और निर्वात स्थान पर कराना चाहिए । इसके अन्दर का भाग साफ और चिकना होना चाहिए। इसके भीतर हाथी, घोडे, गाय, गधे, और ऊँट की लीद भर कर जला दे । इसके उपर अभ्यक्तशरीर व्यक्ति अपने शरीर को कपड़े से ढक कर लेट जावे और सुखपूर्वक स्वेदन करावे । १३ होलाक- स्वेद - गोहरे या उपले के चूर्ण को जला दे । जब यह निर्धूम और लाल हो तो उसके उपर शय्या विछावे । स्वेदन वाला व्यक्ति अपने शरीर मे तेल का अभ्यंग कराके वस्त्र से आच्छादित होकर इस विस्तर पर लेट कर सुखपूर्वक स्वेदन करावे । इस प्रकार अग्नि स्वेद के तेरह विधानो का वर्णन चरकसंहिता सूत्रस्थान के चौदहवे अध्याय में पाया जाता है । इसके अलावे अनग्नि स्वेद के भी दस प्रकार है, जिनका उल्लेख ऊपर मे हो चुका है । इनके नाम ये है -१ व्यायाम, २ उष्ण गृह, ३ गुरु प्रावरण, ४ क्षुधा, ५ बहुत मद्यपान, ६ भय, ७ क्रोध, ८ उपनाह । अनग्नि उपनाह - उष्ण द्रव्यो का मोटा लेप करने से ही स्वेदन हो
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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