SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय खण्ड : प्रथम अध्याय ११३ धारा या फवारे से स्नान करावे। इस क्रिया को परिपेक स्वेद कहते है। इस विधि मे क्वथित जल के लिए चरक ने तीन प्रकार के वर्तनो का नामोल्लेख किया है। कुम्भी (घडा ), वर्पणिका ( छोटा घडा या सहस्र धारा-सहस्र छोटे छिद्रो से युक्त घट) तथा प्रनाडिका ( ऐसी नलिका जिसमे अनेक मुख से जल का परिपेक हो सके )। यह भी आधुनिक दृष्टि मे एक प्रकार को Warm spunging है। ७ जेन्ताक-स्वेट :-यह एक स्वेदन के लिये विशेप प्रकार का वृहद् आयोजन युक्त स्वेदन विवि है। इसमे वस्ती के पूर्व या उत्तर भग्ग मे प्रशस्त एव समान भूमि-भाग मे जहाँ कि मिट्टी कालो, मधुर या सोने के रङ्ग की हो, जहाँ पर कोई दोधिका-पुष्करिणी ( छोटा पोखरा या जलाशय ) हो उसके पश्चिम या दक्षिण के किनारे पर एक गोल आकार का कमरा ( कूटागार ) बनाया जाता है। इसके विपरीत दिशा मे अर्थात् पूर्व या उत्तर दिशा में सुन्दर उपतीर्थ अर्थात् घाट बने हो। यह कमरा पानी की सतह से सात या आठ हाथ की ऊंचाई पर होना चाहिए। कमरे को लम्बाई और चौडाई को उसका व्यास समझना चाहिए। कमरा मिट्टी का और बहुत सी खिडकियो से युक्त होना चाहिए। कमरे की लम्बाई और चौडाई सोलह-सोलह हाथ की होनी चाहिये यह चूंकि गोलाकार बनेगा, अस्तु इस लम्बाई-चौडाई को उसका व्यास समझना चाहिए । इस कमरे के अन्दर की ओर चारो ओर की गोलाई मे एक हाथ ऊँची एक पिण्डिका (कमरे की दीवाल से लगा चबूतरा) बनाना चाहिए । जो दरवाजे तक आवे । यह व्यवस्था ऐमी होनी चाहिए कि कोई व्यक्ति दरवाजे से प्रवेश करके उस पिण्डिका के ऊपर चढ कर घूमता हुआ पूरे कमरे की गोलाई मे परिक्रमा करता हुआ पुन उसी दरवाजे से निकल कर आ सके । __इन कमरे के मध्य मे चार हाथ लम्बी अर्थात् आदमी के माप की एक मिट्टी की बनी भट्टी ( कन्दुक के आकार को ) होनी चाहिए। इस भट्टी में बहुत-से छोटे-छोटे छिद्र होने चाहिए, उसके मध्य मे अंगार-कोष्ठ ( लकडी जलाने का स्थान ) होना चाहिए। साथ ही एक पिधान ( ढक्कन ) की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे आवश्यक्ता के अनुसार उसका द्वार वद किया जा सके । इस अगार-कोष्ठ मे या खण्ड मे खदिर और अश्वकर्ण की लकडी जला देनी चाहिए। जब लकडी अच्छी तरह से जल जाय वह धूवें से रहित और अगार के रूप में हो जाय और पूरा कमरा उस अग्नि के ताप से तप्त हो जाय तो रोगी व्यक्ति के स्वेदन की व्यवस्था करे। दभि० सि०
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy