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________________ " [<]. अन्तमें हमें प्रस्तुत पुस्तक विषयमें कुछ अधिक नहीं... कहना है । इसमें जो कुछ है वह पाठI कोके सामने है | वेशक उसमें नवीनता प्रस्तुत ग्रन्थ । 1 शायद ही कुछ हो पुरातन भाव और चरित्रको ही इसमें स्थान दिया गया है । हा. ऐतिहासिक रीतिसे विवेचना करनेका ढंग उल्लेखनीय है । इसे हमारी समाज के कृतिपय विद्वान शायद पसंद भी नहीं करेंगे । परतु सत्य की खोजके लिये यह ऐतिहासिक परमात्रक है । इमी ऐतिहासिक ढंग प्रसंग में जो बातें हमने श्वेतांवराद सप्रदायोके विषयों कहीं है, वह भी केवल सत्य खोजके भावो लेकर लिखी गई है। इसमें विवश ऐसी परिस्थिति होती है. जिसे एक इतिहास लेखक मेटने और सर्वप्रिय बनाने में असमर्थ रहता है | इससे हमारा भाव किसीका दिल दुखानेका नहीं है और न उनकी मान्यताओको हेय प्रगट करनेका है। इसके साथ ही जो इसमें जैन प्रन्थोंमें उल्लेखित स्थानोंको वद्यामंभव आजकी दुनिया में खोज निकालनेका प्रयत्न किया गया है, वह अनोखा है और इम विषयका प्रथम प्रयास है । आना है, विद्वज्जन इमपर निष्पक्ष हो विचार करेंगे और उचित सम्मति द्वारा अनुग्रहीत करेंगे | भगवान पार्श्वनाथजी के पवित्र जीवन चरित्रको प्रकट करनेवाले इस ग्रन्थको मैं लिख सका हूं यह केवल धर्मका ही प्रभाव है । वरन मुझ जैसे अल्पज्ञकी क्या सामर्थ्य थी जो इस गहन विषयमें अपनी अयोग्य लेखनीका प्रवेश करा सक्ता ! अरू. जय, प्रभु, पार्श्वकी जय ! पार्श्वनि० दिवस २४५४ ] - विनीत - कामताप्रसाद जैन |
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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