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________________ ३२४ ] भगवान पार्श्वनाथ | हाल ही दीक्षा ग्रहण की है और जो वेदोंका अभ्यास करनेवाला ब्राह्मण है वह गौतम (इद्रभूति) इसके लिये योग्य समझा गया ! अत जान पड़ता है कि ज्ञानसे मोक्ष नहीं होता।' बस इस निश्रयके साथ ही वह अपने इस मतका प्रचार लोगो में करने लगा और यह प्रकट करने लगा कि अज्ञानसे ही मोक्ष होता है । देव या ईश्वर कोई है ही नहीं । अतएव स्वेच्छापूर्वक शून्यका ध्यान करना चाहिये । 3 इसप्रकार भगवान पार्श्वनाथजीके तीर्थमें के यह एक अन्य प्रख्यात मुनिका परिचय है । यह तो वौद्धशास्त्रोंसे भी सिद्ध है कि मक्ख लिगोशाल नामक एक बहुप्रसिद्ध मतप्रवर्तक तत्र मौजूद था और आखिर वह आजीविक सम्प्रदायका मुख्य नेता बन गया था । " उनके 'दीघनिकाय' में उसको अज्ञानमतका ही प्रर्वतक बतलाया है । गोशालके मुखसे वहां पर यह कहलाया गया है कि " न कोई हेतु है और न कोई ऐसी पहलेसे स्थित सत्ता ही है जो सत्तात्मक जीवोंके संक्लेशका कारण हो । उनका अशुद्धपना हेतुरहित और पहलेसे स्थित किसी वस्तुकी रचना नहीं है । तथापि सत्तात्मक जीवोंकी शुद्धता के लिए न कोई कारण है और न कोई ऐसा तत्व (Principle) जो पहलेसे मौजूद हो । उनकी शुद्धता अहेतुमय और बिना किसी पहलेसे स्थित वस्तुकी रची हुई है ।" उनकी उत्पत्ति के लिये वहां कुछ नहीं है जो व्यक्तियोंके चारित्रके फलरूप १ - महापरिनिव्वान सुत्त (P. T. S Vol. II) पृ० १५० । २-' वीर” वप ३ अंक १२-१३ पृ० ३१८-१९। 3 – दीर्घनिकाय (P. T. S, Vol. II) पृ० ५३-५४ । ४ -यहापर देव या ईश्वरको नहीं मानका भाव स्पष्ट है ।
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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