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________________ १३२] भगवान पार्श्वनाथ । भर पांच पट्ट देवी है । अर पट्टदेवी आठ हजार विक्रियां करे हैं। ऐसे ही वैरोचनादि इन्द्रनिकै समस्त दश भेदनिमैं भवन परिवारादिक त्रिलोकसारादि ग्रंथनितै जानना । बहुरि रत्नप्रभा पृथ्वीके पक भाग विषै असुर कुमारनिके भवन है अर नागकुमारादिक नवजातिके भवन खरभाग विष है। वहुरि कोई भवन जघन्य हैं ते तो संख्यात बोटी योजनके हैं। उत्कृष्ट भवन असंख्यात योजनके विस्ताररूप है चौकोर है । तीनसौं योजनकी ऊचाई लिए है । भवनकी भूमिसुं छाती पर्यंत तीनसे योजनकी ऊचाई है अर एक एक भवनके मध्यविषै एक योजन ऊंचा पर्वत है, तिस पर्वत ऊपरि जिनेन्द्र नंदिर है ऐम दश जातिके भवनवासीनिके सात कोटी बहत्तरी लाख भवन है । अर सात कोटी बहत्तरी लाख ही जिन चैत्यालय है। अष्ट गुणरूप ऋद्धिनिकरि सहित है । नाना मणिमय भूषणनिकरि जिनका दीप्ति संयुक्त अग है | अर दश प्रकारके चैत्यवृक्ष जिन श्रतिमाकरि विराजित है। अपने तपके प्रभावकरि सुखरूप भोग भोगते तिष्ठै है। जिनके मल, मूत्र, रुधिर, चाम, हाड मास आदिककर वनित दिव्य देह है। अन्य नागकुमार सुपर्णकुमार द्वीपकुमार इन तीनकै आहारकी इच्छा साढा बारह दिन गए होय अर साढावारा मुहर्त गए उछ्वास होय । देहकी उचाई (नागकुमारादि) नव जातिकेनिकै दश धनुप है ।" (एष्ट १७७-१८) साथ ही श्री हरिवंशपुराणजीमे इनके सम्बन्धमें इस प्रकार वर्णन मिलता है - 'नरककी पहली रत्नप्रभा पृथ्वीके खरभाग, पंकभाग और बहुलभाग ये तीन भाग है, . पवहुलमागके दो भाग है, उनमें
SR No.010172
Book TitleBhagavana Parshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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