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________________ (१) उन्नति और अभिवृद्धि के लिए उठा करता है। उस के रोम रोम से सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी न धवरावे । वैर पाप अभिमान छोड़ जग, नित्य नए मंगल गावे || यही अमर स्वर गू जंता रहता है । ससार का हित और कल्याण ही उसकी साधना होती है। अहिंसक जीवन जगत को सदा सुखी, निरापद और आध्यात्मिकता के समुच्च शिखर पर विराजमान देखना चाहता है। अहिसा की लोकप्रियता अहिंमा का सिद्धान इतना लोकप्रिय सिद्धांत रहा है कि कुछ कहते नहीं बनता। संसार के सभी दर्शनशास्त्रों ने इसका स्वागत किया है। जैन दर्शन का तो कण-कण ही अहिंसा की आराधना कर रहा है। जैन दर्शन मे ऐसा कोई, विधिविधान नहीं है, जहां अहिंसा के दर्शन न हो। जैनसाधु के पांच महाव्रतों और श्रावक के पांच अणुव्रतों में सर्वप्रथम स्थान अहिंसा महाव्रत और अहिंसा अणुव्रत को प्राप्त है। श्री स्थानाग सूत्र मे नरकगति मे जाने के-१ महा आरम-हिंसा, २ महापरिग्रह-लोभ, ३ पन्चेन्द्रिय प्राणी का वध, और ४ मासाहार काना, ये चार कारण माने हैं। इन में सर्वप्रथम कारण अहिंसा का अनादर है । सूत्रकृतांग अध्याय १ उद्देश ४ तथा गाथा ७ मे लिखा है "सव्वे अक्कांवदुक्खा य, अओ सव्वे अहिंसिया" अर्थात्-सव प्राणियों को दुःख अप्रिय लगता है, अतः किसी भी प्राणी की हिंमा नहीं करनी चाहिए। जैनेतर धर्मशास्त्र ऋगवेद मे लिखा है . "नकिर्देवा मिनीमसी न किरा योपयामसि' अर्थात्-हम न किसी को मारें और न किसी को धोखा दे ।
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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