SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 5 ) मानमिक किसी भी प्रकार का कष्ट या क्लेश न पहुंचाने का नाम अहिंसा है। हिंसा निवृत्तिरूप और प्रवृत्ति रूप होती है। हिंसा का निवृत्ति रूप अर्थ है - किसी जीव की हिंसा न करना और उस का प्रवृत्ति रूप अर्थ मरते जीव की रक्षा करना होता है । अपने हाथों से या अन्य साधनों से किसी जीव को हानि न पहुंचाना भी अहिंसा है। किन्तु जो जीव मर रहे हैं, दम तोड़ रहे है, उन्हें बचाना भी अहिसा ही | अहिंसा के दोनों रूपों को जीवन मे ले आना ही अहिंसा की पवित्र आराधना कहलाती है । भगवान शान्ति नाथ के जीव ने राजा मेघरथ के भव मे अपने शरीर का मांस देकर एक कबूतर के प्राणी का सर - क्षरण करके अहिंसा के प्रवृत्ति रूप अर्थ को अपनाया था । विवाह के उपलक्ष्य मे मारे जाने वाले पशुओं को बचाकर भगवान अरिष्टनेमि ने, नागनागिन के जोड़े की रक्षा करके भगवान पार्श्वनाथ ने तथा जल रहे गोशालक का जीवन का दान देकर भगवान महावीर ने अहिसा भगवती के प्रवृत्ति रूप अर्थ की ही श्राराधना की थी। अहिसक जीवन के चमत्कार हंसा को अपनाने वाला व्यक्ति अहिंसक कहा जाता है । अहिसक करुणा का छलछलाता हुआ एक विशाल सरोवर होता है । उसका मानस सढ़ा दया के झूले पर झूलता रहता है । उसके यहा किसी का अनिष्ट नहीं होता । आकुलव्याकुल जीवों की वह रक्षा करता है । वहां निरन्तर मैत्री, स्नेह और सहानुभूति की धारा प्रवाहित रहा करती है । ईर्पा-द्र ेप, वैर-विरोध, संकीर्णता और असहिष्णुता आदि विकारी का सर्वनाश हो जाता है । अहिंसक जीवन जहां कहीं भी होता है, ससार उसे प्रकाशस्तभ के रूप मे देखता है। हिंसक जीवन एक निराला ही जीवन वन जाता है, उसका प्रत्येक पग ससार को
SR No.010169
Book TitleBhagavana Mahavira ke Panch Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy