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________________ विख़र रहे थे। हिंसा का जोर बढ़ रहा था। हिंसक यज्ञों में निरीह. पशुओं का रक्त वह रहा था । शूद्रों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार हो रहा था । मानव समाज का भाग्य धर्म के ठेकेदारों के हाथ में था । नारी को कोई भी स्वतन्त्रता नहीं थी। वह विलास का एक खिलौना समझी जाती थी। भगवान महावीर की करुणाशील आत्मा यह सव अत्याचार और पाखण्ड को देख न सकी। भगवान महावीर की आँखें छलक उठी और हृदय रो पड़ा । उन्होंने शोषण, अत्याचार तथा पशवलि के विरोध में अपना आन्दोलन आरम्भ किया। भारत के कोने कोने में पद-यात्रा करके आपने अपने सर्वप्रिय सिद्धान्त 'अहिंसा का प्रचार किया। हिंसा के विरुद्ध आपका अभियान ३० वर्ष तक चलता रहा । बड़े बड़े धुरन्धर विद्वानों को भी आपने अपनी मोहिनी शक्ति से मोहित कर दिया और वे आपके शिष्य बन गये । आप ने अपने जीवन में चोदह हजार पुरुषों को दीक्षित करके साधु बनाया और ३६ हजार वहनों को संयम का व्रत देकर साध्वी बना दिया। लाखों लोगों को अहिंसा आदि अणुव्रतों की प्रतिज्ञा दे कर उन्हें पवित्र एवं नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। भगवान महावीर ने ऐसे सद्गृहस्थ को श्रावक और सद् गहिणी को श्राविका कहा । इस प्रकार साधु-साध्वी, श्रावक और श्राविका के रूप में उन्हों ने एक विशाल संघ तैयार किया। इस संघ को तीर्थ कहा जाता है। तीर्थ के संस्थापक को तीर्थकर कहते हैं। भगवान महावीर जैन धर्म के चौवीसवें तीथर्कर थे। बहत्तर वर्ष की आयु में पावापुरी में कार्तिक
SR No.010167
Book TitleBhagavana Mahavira ke Manohar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherLilam Pranlal Sanghvi Charitable Trust
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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