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________________ अपने प्रिय माता-पिता के मनः सन्तोष के लिए उन्हों में विवाह को स्वीकार किया! किन्तु विवाह उनके लिए वन्धन नहीं बना। उन की पत्नी का नाम यशोदा था। एक पुत्री के आप पिता भी वने। जिसका नाम प्रियदर्शना था। अठ्ठाईस वर्ष की उमर में आपके माता-पिता स्वर्ग सिधार गये। आप घर छोड़ने को तैयार हो गये। बड़े भाई नन्दिवर्धन ने उन्हें फिर रोका । किसी तरह २ वर्ष के लिए वे फिर रुक गये। आखिर ३० वर्ष के भरपूर यौवन में वे घर छोड़ कर सन्यासी (साधु) हो गये। उन्हों ने शरीर का वस्त्र तक भी अपने पास नहीं रखा। साढ़े बारह वर्ष तक घोर तप किया। दुष्टों और राक्षसों ने आप को भयंकर कष्ट दिये। किन्तु आप अपने संयम-पथ पर हिमालय की तरह अडिग रहे । इसी से आप महावीर के नाम से प्रख्यात हुए। अपने इतने लम्बे तपस्वी जीवन में आप प्रायः मौन ही रहे और केवल ३४९ दिन ही भोजन ग्रहण किया। आपका अधिकांश समय ध्यान और समाधि में ही बीतता था। एक दिन आप ऋजुवालिका नदी के किनारे शालिवृक्ष की शीतल छाँह तले गोदुहासन की मुद्रा में आत्मध्यान में लीन बैठे थे कि आपके अन्तःकरण में ईश्वरीय आलोक हुआ । आपने ब्रह्मज्ञान को पा लिया । आप केवलज्ञानी बन गये । आप आंखें वन्द कर के भी अनन्त जगत को हस्त-रेखा की तरह अपनी आत्मा के दिव्य ज्ञान से देखने लगे । आप सर्वज्ञ और सर्वदर्शी बन गये । इस के बाद आप ने अपना प्रचार आरम्भ किया। उस समय भारत के धामिक उपवन में पतझड़ था। चारों ओर कांटे ही कांटे
SR No.010167
Book TitleBhagavana Mahavira ke Manohar Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharmuni
PublisherLilam Pranlal Sanghvi Charitable Trust
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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