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________________ ज्योतिपुरुष महावीर • उपाध्याय अमर मुनि महावीर : गणतन्त्र के राजकुमार गणतन्त्रों के इतिहास में वैशाली के गणतन्त्र का प्रमुख स्थान है । यह मल्ल, लिच्छिवी, वज्जी एवं ज्ञातृ आदि आठ गणतन्त्रों का एक संयुक्त गणतन्त्र था । उक्त गणतन्त्र की राजधानी थी वैशाली, जिसके सम्बन्ध में तथागत बुद्ध ने कहा था-'स्वर्ग के देव देखने हों तो वैशाली के पुरुषों को देखो और देवियां देखनी हों तो वैशाली की महिलाओं को देखो।' इसका अर्थ है वैशाली उस युग में स्वर्ग से स्पर्श करती थी। इसी वैशाली के ही उपनगर क्षत्रियकुंड में ज्ञातृशाखा के गणराजा सिद्धार्थ के यहां वर्वमान महावीर का जन्म हुया । उनकी माता थी विदेह की राजकुमारी रानी त्रिशला । त्रिशला वैशाली गणराज्य के महामान्य राष्ट्राधीश चेटक की छोटी बहिन थी, दिगम्बर जैन पुराण उसे चेटक की पुत्री कहते हैं। भारत का पूर्व खण्ड उन दिनों शासन तन्त्रों की प्रयोग भूमि बन रहा था। एक ओर मल्ल, लिच्छिवी और शाक्य आदि गणतन्त्र फलफूल रहे थे, तो दूसरी ओर मगव, वत्स आदि राजतन्त्र भी यशस्विता के शिखर पर पहुंच रहे थे । महावीर का सम्बन्ध दोनों ही तन्त्रों से था। महावीर मूलतः गणतन्त्र के राजकुमार थे, परन्तु उनके पारिवारिक सम्बन्ध भारत के तत्कालीन अनेक एकतन्त्री उच्च राज वंशों के साथ-साथ भी थे। मगध सम्राट् श्रेणिक, अवन्तीपति चन्द्रप्रद्योत, कौशाम्बी नरेश शतानीक और सिन्धु सीवीर देश के राजा उदाई (उद्रायण) जैसे एकतन्त्र नरेश उनके निकट के रिश्तेदारों में से थे । महावीर को वह सब कुछ प्राप्त था, जो एक राजकुमार को प्राप्त होना चाहिए, भले ही वह गणतन्त्र का ही राजकुमार क्यों न हो । तत्कालीन गणतन्त्र राजतन्त्र के ही कल अविकसित से जनतन्त्रोन्मुख रूपाकार लिए हुए थे। अतः पुराणों में प्राचीन गणतन्त्रों के प्रमुखों की श्री समृद्धि का वर्णन भी राजतन्त्रों जैसा ही मिलता है । अतः महावीर वैभव, विलास, सुख-साधनों की दृष्टि से एकतन्त्र राजकुमारों से कुछ भी न्यून नहीं थे। परन्तु महावीर का जागृत मन वैभव की मोहक लीला में अधिक रम नहीं सका । यौवन के मधुर, रंगीन एवं उद्दाम क्षणों में ही वे त्यागी विरागी बन गए । तीस वर्ष की मदभरी जवानी में, जवकि मानव की आंखें कम ही खुल पाती हैं महावीर ने अांखें खोलीं । अन्दर की ज्ञानचेतना जागी और वे चल पड़े अकेले निर्जन शून्य वनों की ओर साधना के असिधारा पथ पर । प्रजा और परिवार का निर्मल प्यार, अपार मान-सम्मान, भोगविलास के विशाल सुख-साधन और राज्यश्री का मोहक रूप, महावीर को ये सब सहज प्राप्त हुए थे।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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