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________________ ३०३ लोक सांस्कृतिक चेतना और भगवान् महावीर (१८) सूर्यवत् तेजस्वी। (१६) स्वर्ग की तरह कान्तिमान । (२०) पृथ्वी के समान सहिष्णु । (२१) अग्नि की तरह जाज्वल्यमान तेजस्वी । संत-वाणी और लोक संस्कृति : सन्तों द्वारा प्रयुक्त उदाहरण-शैली पूर्ण रूपेण लोक संस्कृति पर आधारित है । सन्त-काव्य में लोक-संस्कृति शीर्पक निवन्ध में ठीक ही कहा गया है कि इन महान युगचेताओं (सन्तों) की वाणी लोक-जीवन के तत्त्वों से प्रभावित है तथा जन-भावना का पूर्ण प्रतिविम्ब इसमें आच्छादित है । लोक-सांस्कृतिक चेतना इन सन्तों के विचार विनमय से ही प्रभावशाली एवं प्रेरणास्रोत बनी है। सन्तों की अप्रस्तुत योजना लोक-तत्वों या लोक-संस्कृति के अत्यन्त निकट है । उनकी प्रतीक-योजना जन-जीवन से ग्रहण की गई है । चरखा, सूप, झीनी चदरिया, साड़ी, कुम्हार, रंगरेज, रहटां, व्याघ्र, मधुकर, कोठरी, चोर, पनिहारिन, बदरिया, ढोलनहार, ध्वजा, मछली, पंछी, हाथी, मतंग दीपक, चंदन, कछया, बनिया, वैद्य, हाथी, दीपक, हंस, कहार, पूत, महतारी, सूरमा, तथा कुआ आदि कुछ ऐसे शब्द हैं जो लोक जीवन, और लोक भाषा से ग्रहण किए गए हैं परन्तु फिर भी ये प्रतीकों के रूप में वेजोड़ साबित होते हैं । इनके द्वारा जो शब्द चित्र या भाव व्यक्त किये गए हैं वे बड़े ही प्रभावशाली और मनोरंजक है । सन्त कवि रूपकों के विधान में बड़े कुशल और चतुर थे। इनके रूपक और अन्योक्तियों की रचना लोक तत्त्वों या लोक संस्कृति के आधार पर हई है। ध्यान देने योग्य वात यह है कि इनकी अप्रस्तुत योजना जितनी जन-जीवन के निकट है उतनी ही यथार्थ और प्रभावशाली है। इस कथन के आलोक में भगवान महावीर की वाणी में प्रयुक्त अप्रस्तुत योजना, रूपक, अन्योक्तियों और लोक संस्कृति के अविनश्वर स्वरों से मुखरित हैं । यहां कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है वित्तण ताणं न लभे पमत्ते, इसम्म लोए अदुवा परत्थ । दीवप्पणळे व अणंत मोहे, नैयाउयं छुभदठुमेव ।।उत्तराव्ययन ४.५।। अर्थात् प्रमादी पुरुष धन द्वारा न इस लोक में अपनी रक्षा कर सकता है न परलोक में। फिर भी धन के असीम मोह से जैसे दीपक के बुझ जाने पर मनुष्य मार्ग को ठीक-ठीक नहीं देख सकता उसी प्रकार प्रमादी पुरुप न्याय-मार्ग को देखते हुए भी नहीं देखता । .१ सन्त काव्य में लोक संस्कृति (समाज, अक्टूबर, ५८) पृ० ४५५
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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