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________________ सांस्कृतिक संदर्भ ये स्वप्न प्रभु के महान् उत्कर्ष के परिचायक थे । भयावह उपसर्गों से तो भगवान् का साधना-काल घिरा हुआ रहा लेकिन मेरू के समान स्थिर प्रभु इन से (उपसर्गो से ) कभी भयातुर न हुए । प्रतिशय पुण्योत्कर्ष की ग्रमिट कहानी है । तीर्थकर भक्ति में भगवान् के चौंतीस अतिशय' कहे गए हैं। उनके लिए 'चउतीस प्रतिशय-विसेस संजुताणं पद का प्रयोग प्राया है । 1. i ३०२ प्रातिहार्य महापुण्यशाली व्यक्तित्व के अमर शृंगार हैं जो लोक संस्कृति को वैभव-: मय बनाते हैं । ये ग्राठ माने गए हैं । तीर्थंकर भगवान् समवशरण में ग्रप्ट प्रातिहार्य से समलंकृत रहते हैं । इन प्रातिहार्यो की पूर्व छटा का जैन ग्रन्थों में भव्य वर्णन है । ,3 परम तपस्वी एवं महा प्रभु भगवान् महावीर की उपमाएं जिस रूप में प्रस्तुत की गई हैं तथा उनमें प्रयुक्त उपमान लोक जीवन से ही गृहीत हैं जो लोक संस्कृति को नैसर्गिक सुपमा के प्रतीक कहे जा सकते हैं । भगवान् महावीर की विशिष्टता शास्त्र में निम्न उपमानों से बताई गई हैं— Or ru pra APP (१) कांस्य पात्र की तरह निर्लेप (२) शंख की तरह निरंजन, रागः रहित । ; (३.) जीव की तरह अप्रतिहत गति : (४) गगन की तरह ग्रालंबन रहितः ॥ (५) वायु की तरह प्रतिवद्ध 22 1 म्की (६) शरद ऋतु के स्वच्छ जल की तरह निर्मलः । (७) कमल पत्र के समान भोग में निर्लेप । ( ८ ) कच्छप के समान जितेन्द्रिय 1. (e) गेडॆ की तरह राग-द्वेप से रहित एकाकी । (१०) पक्षी की तरह अनियमित विहारी । (११) भारण्ड की तरह अप्रमत्त 2825 (१२) उच्च जातीय गजेन्द्र के समान शूर 1 (१३) वृषभ के समान पराक्रमी य (१४) सिंह की तरह दुर्द्धर्पं । (१५) सुमेरू की तरह परीपहों के बीच प्रचल (१६) सागर की तरह गंभीर । (१७) चन्द्रवत् सौम्य । १ समवायांग सूत्र 1 २ FANTA Di (१) पुष्प वर्षा (२) दुभिनाद (६) अशोक तरु ( ७ ) सिंहासन ( ८ ) भामण्डल ३ ग्राचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज : जैनधर्म का मौलिक इतिहास, भाग १, पृ० ३६७ । aa (३) चमर (४) छत्र (५) दिव्य ध्वनि
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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