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________________ २३२ मनोवैनानिक संदर्भ भगवान् महावीर ने जीव-अजीव इन दो मूल तत्त्वों या द्रव्यों को अनंत गुणों व शक्तियों का पुज कहा है । वर्तमान भौतिक विज्ञान ने अजीव तत्त्व रूप पुद्गल व परमाणु की असीम शक्ति को प्रत्यक्ष प्रस्तुत कर दिया है। रेडियो, टेलिविजन, टेलीफोन, विद्य तु, अणुशक्ति केन्द्र आदि पोद्गलिक (भौतिक) शक्ति की ही देन है। इस प्रकार विज्ञान ने अजीव (भौतिक) पदार्थ में असीम विलक्षण शक्तियों को प्रत्यक्ष प्रभावित कर दिया है। भौतिक पदार्थो से जीव (चेतन) अविक गक्ति मपन्न है । जीव की विलक्षा शक्ति का पता इससे सहज ही लग जाता है कि वह भौतिक पदार्थों की शक्ति को अपने अधीन कर अपनी इच्छानुसार उसका उपयोग करने में समर्थ है। परामनोविज्ञान की नवीन खोजों ने आत्मा की आंतरिक जिन विलक्षण शक्तियों का उद्घाटन किया है वे संसार को चमत्कृत कर देने वाली हैं। आधुनिक परामनोविनान का कथन है कि हमारे अंतस्तल मे वह शक्ति विद्यमान है जिससे वह भूत और भविष्यत काल की घटनाओं को वर्तमान के समान ही देख सकता है । समुद्र की गहराई एवं ग्रह-नक्षत्रों से अपना संपर्क स्थापित कर सकता है । वहां संदेश भेज सकता है, वहां भेजा संदेश ग्रहण कर सकता है दूर की घटनाओं का अवलोकन कर सकता है। दूसरे व्यक्ति के मन में चलने वाले विचारों को विना उसके कहे जान सकता है।' बंध तत्त्व: जीव का अजीव से संयोग हो जाना बंध है । बंध के रूप का विवेचन बंध तत्त्व में किया गया है । मनोविज्ञान के अनुसार मनुप्य का चेतन मन फोटो-कैमरा के मुख के समान है। यह अनेक प्रकार के संस्कारो को ग्रहण करता है और इससे उनका अचेतन मन में संचय होता है । अचेतन मन उस अंधकार मय कोठरी में स्थित फोटोग्राफिक प्लेट के समान हैं जिसमें बाहरी पदार्थ के चित्र संचित होते रहते हैं। इसे ही साधारण भापा में 'संस्कार पडना' कहा जाता है। प्राणी की प्रत्येक प्रवृत्ति के अनुरूप उसके अंतस्तल में चित्र अंकित होते रहते हैं, जिन्हें स्मृति से कभी भी देखा जा सकता है। इन चित्रों या संस्कारों का अंतरमन में संचय होता रहता है जो भविष्य में उपयुक्त समय आने व अनुकूल निमित्त मिलने पर उदय होकर प्राणी को अपना परिणाम भोगने के लिए विवश करते है । वर्तमान परामनोविज्ञान ने प्रयोगों के आधार पर यहां तक सिद्ध कर दिया है कि हमारी प्रत्येक परिस्थिति का निर्माण पूर्व संचित संस्कारो या कार्यों के परिणाम स्वरूप होता है ।। उपर्युक्त संस्कार-संरचना को जैन-दर्शन की भापा में 'कर्म' कहा जा सकता है। जैन-दर्शन में कर्म को पुद्गल, अचेतन, भौतिक पदार्थ माना है। आधुनिक मनोविज्ञान भी इसे भौतिक तत्त्व के रूप में मानता है। आधुनिक मनोविज्ञान विचार व विचारों की तरंगों को रूप, रंग, आकृति आदि से मुक्त तो मानता ही है साथ ही इन तरंगों को प्रेषण व ग्रहण क्रियाओं को भी स्वीकार करता है । विचारो से संदेश प्रेपण व ग्रहण विधि को १. मनोवैज्ञानिक चिंतन, पृ० १०
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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