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________________ ३८ 1 मनोविज्ञान के परिवेक्ष्य में भगवान् महावीर का तत्वज्ञान • श्री कन्हैयालाल लोढा wwwww wwwwww. wwwwww श्रतीन्द्रिय ज्ञान : अनन्त ज्ञान : भगवान महावीर अनंतज्ञानी थे । उस अनंतज्ञान का रूप में व्यक्त किया । जिस प्रकार लाल, पीला व नीला इन तीन रे, ग, म प, वा, नि इन सात स्वरों से असंख्य रागनियों का उद्भव होता है तथा गरि सार भगवान् ने नौ तत्व के रंगों से असंख्य रंग, सा, के नौ ग्रंकों से अनंत संख्यायों का बोध होता है, परन्तु न तो कोई व्यक्ति असंख्य रंगों को बनाने में सक्षम है और न कोई ग्रसंख्य रागनियों को गाकर सुना सकता है तथा न कोई अनंत संख्याएं लिख या बोल सकता है । जीवन में केवल जिन रंगों, रागों एवं संस्थानों का उपयोग संभव है, उनका ही विवेचन, लेखन व कथन में किया जाता है । जब ऐसा साधारण ज्ञान भी एक सीमा में ही प्रकट किया जा सकता है तब फिर भगवान तो विलक्षण अनंतज्ञान के धारी थे । कारण कि उनका ज्ञान उपर्युक्त इन्द्रिय जन्य न होने से धारण ज्ञान न था परन्तु ग्रात्मिक शक्ति जन्य प्रतीन्द्रिय विलक्षण था। जब उपर्युक्त रंग, राग व अंकों का साधारण ज्ञान भी अपने अल्प श में ही प्रस्तुत हो सकता है तो अतीन्द्रिय अनंत का पूर्ण प्रस्तुत कैसे शक्य था ? अतः भगवान् महावीर ने अपने ग्रन्त ज्ञान में से केवल उसी ज्ञान को प्रस्तुत किया जिसका सीधा सम्बन्ध जीवन से था, जो जीवन के लिए उपयोगी व कल्याणकारी था । अनन्त ज्ञान का विस्तार और नव तत्त्व : जिस प्रकार अनंत संख्यात्रों का ग्राधार नौ अंक है उसी प्रकार समस्त ज्ञान का आधार भी नौ तत्त्व हैं । जैसे अनंत संख्याएं नौ ग्रंकों का ही विस्तार मात्र है उसी प्रकार नत ज्ञान नौ तत्त्वों का ही विस्तार मात्र है। नव तत्त्व ही सर्व ज्ञान का सार व ग्राधार है | भगवान् ने नौ तत्त्व कहे हैं - यथा - ( १ ) जीव (३) पुण्य (४) पाप ( ५ ) ग्रश्रव ( ३ ) संवर ( ७ ) निर्जरा (८) बंध (२) अजीव और ( 8 ) मोक्ष # 1 जीव-प्रजीव : जिस प्रकार गणित के कम्प्यूटर में दो अंकों से ही सव ग्रांक वनते है । टेलिग्राम प्रणाली में गर, गट इन दो शब्दों से ही सब शब्द बनते है इसी प्रकार जीव और जीव दो मूल तत्त्व हैं । इन दो तत्त्वों के पारस्परिक सम्बन्ध रूप ही से शेष सव तत्त्व बनते है । in
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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