SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनोविज्ञान के परिवेक्ष्य में भगवान महावीर का तत्वज्ञान २३३ 'टेलिपेथीं' कहा जाता है। रूस और अमेरिका इन दोनों ही देशों ने हजारों मील दूर सागर. में निमग्न पनडुब्बी में बैठे व्यक्ति को एवं उपग्रह में जाते व्यक्तियों को टेलिपैथी से विचारों का संदेश भेजने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है । .... ......... कपाय रूप राग-द्वप मन, वचन, काया की प्रवृत्तियों से कर्म. परमाणुगों-कामणिवर्गणाओं का खिंचाव होता है और वे कर्म परमाणु के पुज आभा से बंध जाते हैं। इसे कार्माण शरीर कहते हैं। मनोविज्ञान की भापा में इसे अचेतन मन का गुह्यतम स्तर भी कहा जा सकता है। यही कारण शरीर सव' वासनाओं व कामनाओं का मूल स्रोत है अर्थात् 'सब वासनाएं व कामनाए वीज रूप में कारण शरीर में विद्यमान रहती हैं। प्राणी या मनुष्य के शरीर, आकार, प्रकार, व्यवहार व स्वभाव में जो कुछ भी भिन्नता व भलापन-बुरापन, सुंदरता-कुरूपंता प्रादि पायी जाती हैं उन सबका कारण कारण शरीर में स्थित विभिन्न प्रकार के बीज ही हैं। तात्पर्य यह है कि प्राणी का तन, मन व प्रत्येक परिस्थिति उसके कर्मों के परिणाम है । .. : . . . . . . . . . . ........... मोकशा: :: : : ............ .... : जैन दर्शन में कर्मवंध, उदय व फल भोग की प्रक्रिया का विस्तृत विवेचन हैं । साथ ही पूर्व बंधे हुए कर्मों के परिवर्तन के विविध रूप व उपाय भी प्रस्तुत किए गए हैं। इन्हें. 'करण' कहा जाता है। करण आठ हैं, यथा--(१) बंधन करण, (२). निधत्त करण, (३) निकाचना करण, (४) उद्वर्तना करण, (५) अपवर्तना करण, (६) संक्रमण करण, (७) उदीरणा करण और (८) उपशमना करण। ....: (१) बंधन करण-प्रवृत्ति और राग-द्वेप भाव के कारण- कर्म बंधना:या संस्कार निर्माण का वीज पड़ना वंधन करण है । इसे मनोविज्ञान की भाषा में ग्रथि-निर्माण-कहा. जा सकता है ।:: :::: : :::::::: . .. (२) निधत्त करण-जैसे पहले बीज साधारण शक्ति वाला निर्वल हो, बीदकर नष्ट होने योग्य हो, परन्तु दवा आदि के प्रयोग से उसे सुरक्षित व दृढ़ शक्ति वाला बना लिया जाय इसी प्रकार पहले सामान्य या नीरस भाव से बांधते समय कर्म ढीले ववे हों परन्तु फिर उनमें रुचि ली जाय, गर्व किया जाय, अच्छा समझा जाय तो वे बंवे हुए कर्म दृढ़ हो जाते हैं । कर्म बंध की इस क्रिया को निधत्ति करण कहते हैं। . (३) निकाचना करण--जिस प्रकार खेत में बोया हुआ बीज किसी कारण से ऐसी स्थिति में हो जाय कि उसकी फलदान की शक्ति में कोई भी अंतर न आवे इसी प्रकार पूर्व बंधे हुए कर्म में इतना गृद्ध हो जाय कि उसको अन्य प्रकार के भाव यावेही नहीं, वह दृढ़तम बन जाय फिर उसके फलदान शक्ति में न्यूनाधिकता व परिवर्तन न आवे : कर्मबंध की : क्रया को निकाचना करण कहते हैं । जी : .. (४). उद्वर्तना करण-जिस प्रकार खेत में वोये हुए वीज में अनुकूल ख़ाद व जल मिलाने से वह पुष्ट होता है। उसकी आयु व सरस फल देने की शक्ति बढ़ जाती है इस
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy