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________________ २३० मनोवैज्ञानिक संदर्भ वताये हैं। सावध-योग (पापक्रिया) का त्याग करना इनके त्याग की सहायक क्रिया है।' कषाय प्रतिसलीनता इनके संक्षय का दूसरा उपाय है । भगवान् ने इन्हें जीतने के लिये क्रमशः उपशम, मृदुता, ऋजुता और संतोष के अभ्यास रूप उपाय भी बताये हैं । यह भगवान का 'समत्व-योग' है । योग-संयम : चौथा वन्व हेतु है-योग । मन, वचन और काया की क्रिया को योग कहते हैं। योग अनियन्त्रण जीव के लिये दुःखद है । यह योग ही आत्मा में कर्म के प्रवेश का प्रमुख द्वार है । आज योग-प्रसंयम की वृद्धि के अनेक साधन हैं ! __ योग-संयम के भगवान् ने अनेक स्तर बताये हैं । करण और योग के संयोग से त्याग के अनेक विकल्प (भंग) वनते हैं। योग-संयम के लिए प्रमुख रूप से सावध योग के त्यागपूर्वक समिति (शुभ क्रिया के अभ्यास) और गुप्तियों (अशुभ क्रिया तथा समस्त क्रिया के निरोध) का विधान किया है ।६ । इसके सिवाय पांच गतियों के चार-चार कारण भावना-योग, विशिष्ट व्यानविधान पट्-यावश्यक क्रियाएं आदि बातें प्रत्येक युग में उपयोगी हैं। पत्र लम्बा हो गया है । जानबूझकर, अधिकांश विचार वैयक्तिक स्तर पर ही किया. गया. है, विश्व-समस्यायों के स्तर पर नहीं । तुमने विश्व की समस्याओं के समाधान के स्तर पर, भगवान महावीर के अपरिग्रह, अहिंसा, अनेकान्त सिद्धान्तों की चर्चा काफी सुन रखी होगी । मेरी दृष्टि में, प्रत्येक वात को विश्व के स्तर पर सोचने पर, व्यक्ति की साधनात्मक दृष्टि अदृश्य हो जाती है। वह सारे विश्व को, जीवों की वैयक्तिक पृथक् सत्ता को नजरअंदाज करके, अपनी कल्पना के रंग में रंगना चाहता है । यह अहंकार के सिवाय और कुछ नहीं है । विश्व की समस्याओं के समाधान से व्यक्ति पहले अपने आपको ही सुधार ले तो अच्छा है । अस्तु । प्राशा है, इस पत्र से तुम्हारी जिज्ञासा सन्तुष्ट होगी। यदि तुम्हें अच्छा लगे तो इस पत्र का चिन्तन-मनन करना नहीं तो मुझे कहना न होगा, रद्दी की टोकरी तुम्हारे पास पड़ी ही होगी। तुम्हारा समाधान हो या न हो, पर मेरा चित्त इतने समय तक शुभ उपयोग में रहा, यह मेरे लिए परम लाभ ही हुआ ! सभी परिचितों को यथायोग्य तुम्हारे अग्रज सुमति का आशीर्वाद । . . . . m १. सामायिक-सूत्र । ३. दसवेयालिय ८/३६ । ५. भगवई ८/५/३२८ । ७. उववाइय ३४ । ६. उववाइय, ठाण ४ । २. उववाइय । ४. तत्वार्थ ६/१। ६. उत्तर २४/२६ । ८. तत्वार्थ ७/६ व ६/७ । १०. श्रावस्सय, अणुयोगदार चउसरण ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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