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________________ भगवान् महावीर की वे वातें जो प्राज भी उपयोगी है २२६ से हिंसा, युद्ध, असत्य, ठगाई, चोरी आदि से सम्बन्धित जगत् की कई समस्याएं हल हो सकती हैं । अतः अपनी-अपनी शक्त्यनुसार, गुरु चरण में, आत्म-साक्षी - पूर्वक विरति की प्रतिज्ञा स्वीकार करके, उसे दृढ़ता से पालन करने से ही दूसरे बन्ध हेतु को निर्मूल किया जा सकता है | यह भगवान् का यथाशक्ति उद्यम का मार्ग है । असावधानी का परित्याग : तीसरा बन्ध हेतु प्रमाद है । वस्तुतः प्रमाद ही हिंसा है । ग्राज की भौतिक सभ्यता की प्रमाद एक प्रमुख देन है । प्रमाद ( सावधानी) से चारों श्रोर भय ही भय है | अप्रमादी ही निर्भय हो सकता है । " सावधानी के पांच कारण हैं- (१) नशा ( २ ) ऐन्द्रियक लोलुपता ( ३ ) ग्रावेश (४) निद्रा तन्द्रा और ( ५ ) विकृत ( आत्मा को विकार की ओर ले जाने वाला) वार्तालाप | इन पांचों कारणों की श्राज विपुलता दिखाई देती है | भगवान् ने प्रमाद के परित्याग के लिये श्रप्रमत्तता की प्राप्ति के लिए इन पांचों कारणों के परित्याग पर बल दिया है । ग्रप्रमत्त जीव ही त्रिरत्न की रक्षा कर सकता है । कषाय-परित्याग : कपाय ( ग्रावेश) चौथा वन्ध हेतु है । कपाय ही संसार है । कपाय से ही विषमता पैदा होती है और विपमता में जीव जी रहा है । कपाय को भगवान् ने अध्यात्म हेतु 3 या अध्यात्मदोष कहा है । अध्यात्मदीप चार हैं— क्रोध, मान, माया ( छल-कपट ) और लोभ । इन चारों से ग्रात्म-मालिन्य की वृद्धि होती है ।" ये दोष क्रमशः प्रीति, विनय, मैत्री और समस्त प्रशस्त भावों के विनाशक हैं आज हम सुनते हैं कि मानव क्षणिक आवेश में प्रिय से प्रियजन की हत्या कर डालता है, पूज्यजनों के प्रति उद्दण्ड व्यवहार करता है, यश प्रादि के लिये छल भरे अनेक मायाजाल रचता है और लोभ में वह क्या - क्या अनर्थ नहीं करता है ? इन सबके मूल में प्रवेश ही है । इनकों क्षय कर देना ही मुक्ति है । भगवान् ने कषायमुक्ति के विविध उपाय १. आयारंग ॥ २. मज्जं विसय कसाया, निद्दा विगहा पंचमी भरिया । एए पंच पमाया, जीवा पार्डेति संसारे | ३. उत्तर० १४ / १६ ४. सूयगड ६ / २७ ५. ६. ७. ॥ दसवेयालिय ८ / ३७/३८ । दसवेयालिय ८ / ३७:३८ । कपाय मुक्तिः किलमुक्तिरेव ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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