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________________ २७ महावीर को दृष्टि में मानव-व्यक्तित्व के विकास की संभावनाएं • डॉ० छविनाथ त्रिपाठी व्यक्ति का भाव ही व्यक्तित्व : व्यक्तित्व अंग्रेजी के Personality का स्थानापन्न शब्द माना जाता है । व्यक्ति का भाव ही व्यक्तित्व है । यह स्वाभाविक ही है कि मानव विशेषरण जोड़ देने पर एक ओर यह तिर्यक योनि से अपनी पृथकता सूचित करता है और दूसरी ओर इसका क्षेत्र व्यक्तिमानव से लेकर मानव जाति तक विस्तृत हो जाता है । भाव वाचक संज्ञा होने से यह भी सूचित होता है कि व्यक्तित्व का सम्बन्ध केवल स्थूल शरीर मात्र से या आकार प्रकार से नहीं है । एक व्यक्ति कितना ही सुन्दर, सुगठित और शाकर्षक शरीर वाला क्यों न हो, जब उसके आचरण ग्रोर बौद्धिक क्षमता की त्रुटियों का ज्ञान होता है तो उसके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में सर्व सामान्य की धारणा बदल जाती है, उसका व्यक्तित्व हीन प्रतीत होने लगता है । यह स्पष्ट सूचना है कि मानव-व्यक्तित्व के तत्त्व प्रान्तरिक और सूक्ष्म हैं तथा उसका सम्बन्ध कोरे शरीर से नहीं है । मानवीय ग्राचरण और मानवता के विशिष्ट गुणतत्त्व ही मानव-व्यक्तित्व के परिचायक हैं । श्राचरण का सम्यक्त्व और मानवीय गुणों का उत्तरोत्तर निखार ही मानव-व्यक्तित्व का विकास है । परिष्कार की प्रक्रिया : मानव-शरीर को करोड़ों वर्षों के विकास का परिणाम मानने वाली प्राधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि भी यह स्वीकार करती है कि मानवीय आचरण और मानवता के गुरंगों का उत्तरोत्तर परिष्कार हुआ है, और परिष्करण की इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ही प्राज का मानव, गुफा-युग के मानव से बहुत कुछ भिन्न है । परिष्करण की संभावनाओं का अन्वेषरण, परिष्करण की प्रक्रिया में ही किया जा सकता है । 1 आहार, निद्रा, भय और मैथुन से परे कुछ तत्त्व ही मानव को पशु-पक्षी आदि से पृथक् करते है । ये मानव शरीर के धर्म है अतः मानवता और उसके व्यक्तित्व का परिष्करण केवल शरीर-परिष्करण मात्र नहीं है । मानसिक मलिनता, शारीरिक शुचिता को मूल्यहीन वना देती है, अतः परिष्करण की प्रक्रिया शरीर और आत्मा की ओर उन्मुख होने पर ही वास्तविक विकास संभव है । स्थूल शरीर के परिष्कार के लिए स्थूल उपकरण चाहिए, पर मन, बुद्धि और ग्रात्मा जैसे सूक्ष्म तत्त्वों का परिष्कार परे मन, बुद्धि
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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