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________________ भीतर की बीज-शक्ति को विकसित करें १५३ , एक और उदाहरण हमारे सामने है। किसी घर में एक और कमरा बनाना है । लगभग दो हजार के व्यय का अनुमान है। कारीगर-मिस्त्री कहता है-अच्छा कमरा बनाने में पांच हजार व्यय होंगे। दो हजार का पहला अनुमान और व्यय होंगे पांच हजार या उससे अधिक फिर भी मन में कोई कष्ट नहीं होता, प्रश्न नहीं उठता। ___ दूसरी ओर यदि किसी धार्मिक कार्य के निमित्त 'संवर और निर्जरा' के कार्य में दो हजार का व्यय होने का अनुमान था और पांच हजार व्यय हो जायें तो ? तो मुह बनाकर कहेंगे-हमने तो दो हजार का कहा था, इससे अधिक नहीं दे सकेंगे, हाथ रुक जाता है। इसका अर्थ क्या हुआ? इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि प्रारम्भ और परिग्रह दोनों में भारी गठजोड़ है । ये दोनों ऐसे भारी रोग हैं जो हमारे चिंतन और हमारी चेतनाशक्ति को विकसित होने नहीं देते । इतना ही नहीं वे चिंतन और चेतनाशक्ति को उभरने ही नहीं देते। केवली भगवान के प्रवचन धर्म-श्रवण का अधिकार प्राप्त करने वाला प्राणी यह सोचता है कि यदि वह प्रारम्भ और परिग्रह से विमुख होकर आगे बढ़ेगा तभी उसे सत्संग का लाभ हो सकेगा । उस लाभ से वंचित रहने के उक्त दो ही कारण हो सकते हैं। ___ परिग्रह का अर्थ केवल पैसा बढ़ाना या उसे तिजोरी में भरना ही नहीं है अपितु परिवार, व्यवसाय, व्यापार में उलझा रहना भी परिग्रह ही है । बाह्य परिग्रह के नौ और अभ्यन्तर के चौदह भेद बताये गये हैं । धन, धान्य, क्षेत्र, भूमि, सम्पत्ति, सोना, चांदी ग्राभूपण, जवाहरात, घरेलू सामान आदि सभी वाह्य परिग्रह के भेद हैं । परिवार-कुटुम्ब, दास-दासी आदि भी इसी में आते हैं । मन में रहने वाले लोभ, मोह-माया आदि भाव आंतरिक परिग्रह हैं । ये वाह्य परिग्रह के मूलाधार हैं। इनमें उलझा हुआ प्राणी सत्संग का लाभ नहीं ले सकता । अतः इनसे ऊपर उठने का बराबर प्रयत्न रहना चाहिए।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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