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________________ १८४ गजनीनिक संटन यह प्रान्ति वीर गान्ति के निये लड़ा, मैनी और प्रेम के लिए लता, हम गार्ड में किसी का अहित नहीं हुआ। उस वीर ने लक्ष्य प्राप्ति के बाद मिनी मानाज्यको भू-ठित करने की कामना नहीं की, किसी नत्राट को नीना दिगाने की नहीं मोनी, बड़प्पन की धाक जमा कर पूर्णत्व का वहीं विज्ञापन नहीं किया। उनके दिल में अन्तर्नाद था । वे उगे दूर करने के लिए अकेले नंगे पावों गे बिना किनी अवलम्बन के निकल पड़े और बीहद पंथों, निर्जन स्थलों, सूट मन्दिरों, मण्डहरों, मगानों और पेत्रों के नीचे अलख जगाते रहे । माधना की पूर्ण उपलब्धि पर उनके जीवन की सर्वागीगा सफलता, शान्ति, मुख पीर श्रानन्द में बदल गई । यही शान्ति, मुनीर मानन्द, पूर्णत्व है, शिवत्व है, ब्रह्मत्व है। । उनके मानस में क्षमा और वैराग्य का सागर लहरा रहा था, उसमें प्रेम और माहचर्य की उमियां उठ रही थीं । जीवन-दगियों को उसमें बहुमुल्य होरे दोल रहे थे। ऐसी स्थिति में उनके पास टोले के टोले पाते । कोई उनसे क्षमा, कोई यं, फोः गहनशीलता, कोई करुणा, कोई दया लेकर अपने को गौरवमय बनाता । उनके जीवन दर्शन से सम्राटों ने अपना जीवन बदला और वे उनके साथ साधना पथ पर चल पड़े। . क्रान्ति : अात्म संक्रान्ति : महावीर के पास जो कुछ था, वह अपना मौलिक अजित धन था । वह धन स्वयं की बुद्धि, अनुभव और वर्षों की साधना का नवनीत था। उनके अन्तर की प्रेरणा ही सर्वस्व थी । वे उसी प्रेरणा का सम्बल पाकर लाखों का जीवन बदलते हुए प्रतिज्ञा दिला कर विश्वास बढ़ा रहे थे। उनके मानम में एक प्रदीप जल रहा था। वह जल-जन्न कर धरित्री पर अदृश्य रूप से सुख और आनन्द का आलोक विकीर्ग कर रहा था। वे जव भूतल पर दृष्टि डालते तो वर्तमान के साथ भविप्य भी उन्हें दृष्टिगत हो जाता था । पूर्णता प्राप्त कर लेने के बाद तो संसार के भावी चक्र पारदर्णी ग्लान की तरह उन्हें साफ दिखाई दे रहे थे क्योंकि वे निर्मोही होकर रागों के सम्पूर्ण बंधन तोड़ते हुए वीतरागी हो गये थे। मोह की वेड़ियां और लोभ और स्वार्थ के तारों को तोड़कर उत्तमोत्तम वन गये थे। यह उनकी अनुभव दृष्टि का ही कमाल था । साधना की ही देन थी। क्षमा और त्याग की ही विजय थी। महावीर की क्रान्ति में जन जीवन का कहीं भी उत्पीड़न नहीं था। सर्वथा सुख और शान्ति थी। उनके उपदेशों में वैराग्य, साधना में गान्ति, ललकार में विवेक, दृष्टि में संतोष और हलन-चलन में चेतना पूर्ण विश्वास था । इसीलिए हाड़-मांस का एक व्यक्तित्व अनेकों व्यक्तियों को असाधारण रूप से प्रभावित कर रहा था, जन जीवन को झकझोर रहा था, हिंसा, असत्य और उन्माद के पर्दे तोड़ रहा था, काम-क्रोध-मद-लोभ मिटा कर दुर्गुणों के खिलाफ संघर्ष जारी था । र उनके प्रतापी व्यक्तित्व में देवत्व की झांकी झलक रही थी। त्याग और वैराग्य की सुरसरि सतत प्रवाहित हो रही थी, उसी में सभी स्नान कर रहे थे। कोई डुवको लगा कर
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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