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________________ महावीर की क्रान्ति से ग्राज के क्रान्तिकारी क्या प्रेरणा लें ? एक क्रांति में देश-प्रेम और देश- गौरव लहरा रहा था और दूसरी क्रांति में क्षमा,, वैर्य कर्तव्य, सेवा, दया, करुणा, प्रेम, परोपकार और समन्वय के भावात्मक समभाव तरंगति हो रहे थे । वह भी एक क्रांति थी और यह भी एक क्रांति थी । लक्ष्य प्राप्ति के बाद एक में अवसान था और दूसरी में जन-जीवन का शाश्वत कल्याण था । महावीर की क्राँति सीमातीत थी । यह अनेक भू-खण्डों में व्याप्त होकर व्यापक बन गई थी । वह एक विचार तरंग से उठी, वैराग्य से फैली, त्याग और कष्टों से आंदोलित हुई और उसकी लहरें देश-देशांतरों को छूती हुई ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गई । १४३ महावीर की व्यथा से आर्द्र और प्रेम से पूर्ण आह्नान, क्रांतिकारी ललकारें तथा मंगल भाव तरंगें देश के कोने-कोने में समा गई, ऋणु प्रणु में मिल गई । उनकी सुखपूर्ण वारणी करण-करण में लीन हो गई | क्या पेड़-पौधे, क्या पशु-पक्षी, क्या वनखण्ड, क्या निर्जन घाटियां, क्या शैल - शिखर क्या नदियां, और झरनों के स्वरों में मिलकर लक्ष-लक्ष कण्ठों से वह गूंज उठी कि 'सत्य की जय हो' 'ग्रहिसा की जय हो' 'सभी मुखी हों । मानस परिवर्तन की प्रक्रिया : एक में प्राप्ति थी और दूसरी में मानस परिवर्तन की सुधारात्मक जागृति थी । घृणा की जगह प्रेम था, हिंसा की जगह अहिंसा थी । उसमें एक भाव था, एक विचार था, एक दृष्टि थी, एक राग और एक ही स्वर था । यह कितने ग्राश्चर्य की बात है कि एक के लिए समूचा देश लड़ रहा था और दूसरी के लिए केवल एक ही व्यक्ति भूझ रहा था । एक ही व्यक्ति बलिदान पर बलिदान दे रहा था ? जीवन के सम्पूर्ण सुखों का त्याग कर रहा था । एक ही साहसी महारथी अपनी योग्यता का परीक्षण कर रहा था । वह परीक्षण अविरल चलता रहा, तूफानों में, आँधियों में बवंडरों में भी उसकी गति मन्द नहीं हुई । कितनी प्रबल प्रेरणा का प्रदीप लेकर वह क्रान्ति वीर आगे बढ़ा होगा दृढ़ निश्चय और निर्भीकता के साथ, प्रेम, मैत्री, सद्भाव और सद् विचारों का दीप जला कर किन संकटों में ग्रालोक फैलाया होगा ? उन प्रतापी पुरुष को अपमान भी बुरा न लगा, अनादर से भी उन्हें घृणा नहीं हुई, पत्थरों की वर्षा से भी वे भयभीत नहीं हुए । मिट्टी के ढेलों, पागल कुत्तों और धूल की बौछारों से वे नहीं घबराये । दुःख में भी उन्हें सुख का ग्राभास हो रहा था । उनका लक्ष्य था अंधकार से मानव को प्रालोक में लाना, आसक्ति छुड़ाना, लोभ-मोह से हटाना और जीवन में सच्चे सुख और आनन्द का अनुभव कराना ताकि मानव को कोई कामना न सतावे ? कोई लोभ पतन में न डाले, कोई स्वार्थ पथ भ्रष्ट न करे और कोई मोह न गिरावे | जो सर्वस्व त्याग रहा हो उसे लोभ-लालच कैसे गिरा सकते हैं ? शीत, वर्षा और चूप कैसे दुःख पहुंचा सकते हैं ? दुःख उनके पास सुख हो जाता, पीड़ा उनके पास श्रानन्द की प्रतीक बन जाती और वे निरन्तर ऊपर उठते जाते ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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