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________________ विश्व-गांति के संदर्भ में भगवान महावीर का सन्देश १३५ करता । इस अहंभाव और एकांत दृष्टिकोण से आज व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी पीड़ित हैं । इसीलिए उनमें संघर्ष है, सौहार्द का अभाव है। ___ भगवान् महावीर ने इस स्थिति से विश्व को उबारने के लिए अनेकांतवाद (सिद्धांत) का प्रतिपादन किया। उनका कहना है कि प्रत्येक वस्तु के अनन्त पक्ष हैं। उन पक्षों को उन्होंने धर्म की संज्ञा दी। इस दृष्टिकोण से संसार की प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक है । किसी भी पदार्थ को अनेक दृष्टियों से देखना, किसी भी वस्तु तत्व का भिन्नभिन्न अपेक्षाओं से पर्यालोचन करना अनेकांतवाद है । अनन्त धर्मात्मक वस्तु को यदि कोई एक ही धर्म में सीमित करना चाहे, किसी एक धर्म के द्वारा होने वाले ज्ञान को ही समग्र वस्तु का ज्ञान समझ बैठे तो यह वस्तु को यथार्थ स्वरूप में समझना न होगा। सापेक्ष स्थिति में ही यह सत्य हो सकता है, निरपेक्ष स्थिति में नहीं। हाथी को खंभे जैसा बतलाने वाला व्यक्ति अपनी दृष्टि से सच्चा है, परन्तु हाथी को रस्सी जैसा कहने वाले की दृष्टि में वह सच्चा नहीं है । अतः हाथी का समग्र जान करने के लिए, समूचे हाथी का ज्ञान कराने वाली सभी दृष्टियों को अपेक्षा रहती हैं। इसी अपेक्षा हप्टि के कारण 'अनेकांतवाद' का नाम अपेक्षावाद और स्याद्वाद भी है । स्यात् का अर्थ है-किसी अपेक्षा से, किसी दृष्टि से और वाद का अर्थ है-कथन करना, अपेक्षा विशेष से वस्तु तत्व का विवेचन करना ही स्थाद्वाद है। अनेकान्तवाद कहता है कि यह वस्तु एकांततः ऐसी ही है, ऐसा मत कहो। 'ही' के स्थान पर 'भी' का प्रयोग करो। इससे ध्वनित होगा कि इस अपेक्षा से परत का स्वरूप ऐसा भी है । इस प्रकार के कथन से संघर्ष नहीं बढ़ेगा और परस्पर समता तथा सौहार्द का मधुर वातावरण निर्मित होगा । भगवान महावीर ने यह अच्छी तरह जान लिया था कि जीवन तत्व अपने में पूर्ण होते हुए भी वह कई अंशों की अखण्ड समष्टि है। इसीलिए अंशी को समझने के लिए अंश का समझना भी जरूरी है। यदि हम अंश को नकारते रहे, उसकी उपेक्षा करते रहे तो हम अंशी को उसके सर्वांग सम्पूर्ण रूप में नहीं समझ सकेंगे । सामान्यतः झगड़े, दुराग्रह, हठवादिता आदि एक पक्ष पर अड़े रहने के कारण ही होते हैं । यदि उनके समस्त पहलुओं को अच्छी तरह से देख लिया जाय तो कहीं न कही सत्यांश निकल ही आयेगा। एक ही वस्तु या विचार को एक तरह से न देख कर उसे चारों ओर से देख लिया जाय, फिर किसी को ऐतराज न रहेगा । प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने अपने सापेक्षवाद सिद्धान्त को इसी भूमिका पर प्रतिष्ठित किया है । व्यक्ति ही नहीं, आज के तथाकथित राष्ट्र भी दुराग्रह और हठवादिता को छोड़ कर यदि विश्व की समस्याओं को सभी दृष्टियों से देख कर उन्हें हल करना चाहें तो अनेकांत दृष्टि से ससम्मान हल कर सकते हैं । महावीर को हुए लगभग २५०० वर्ष बीत गये हैं पर उनका अहिंसा, समता, अपरिग्रह और अनेकांत का सिद्धान्त अाज भी उतना ही ताजा और प्रभावकारी है, जितना कि वह उस समय था।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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