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________________ १३४ राजनीतिक सदर्भ . सीमित बनायो । यदि व्यक्ति अपनी आवश्यकतायें मीमित कर लेगा तो उसकी इच्छाएं स्वतः सीमित हो जायेंगी। विज्ञान की उन्नति से यद्यपि अाज वस्तुओं का उत्पादन कई गुना बढ़ गया है तथापि उनका अभाव ही अभाव परिलक्षित होता है। आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके पास खाने को अन्न और पहनने को वच सुलभ नहीं है । इसका कारण है कि मानव, समाज और राष्ट्र की संग्रह-वृत्ति ने कृत्रिम अभाव पैदा कर दिया है। आज का व्यक्ति बड़ा लोभी है । वह वस्तुओं का संग्रह कर बाजार में उसका प्रभाव देखना चाहता है । ज्योंही वस्तुओं का अभाव हुआ कि उनकी बढ़ी कीमतों को प्राप्त कर वह लखपति, करोड़पति बनना चाहता है । वस्तुओं के अभाव में उत्पन्न हुई अपने ही भाइयों की परेशानियों की वह विल्कुल भी चिन्ता नहीं करता । आवश्यकता से अधिक वस्तुएं एक स्थान पर संगृहीत न की जाये तो वे सबके लिए सुलभ हो जायेंगी । फिर पूजीवाद और साम्यवाद के नाम से जो विरोध और संघर्प आज चल रहे हैं, वे स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे। भगवान् महावीर ने स्पष्ट कहा--अशांति का मूल कारण वस्तु के प्रति ममत्व एवं आसक्ति का होना है । संगृहीत वस्तु पर किसी प्रकार की प्रांच नहीं आये, उसे कोई लेकर नहीं चला जाय, इस चिन्ता से उसके संरक्षण और संवर्धन की भावना पैदा होती है । अन्य व्यक्ति उस वस्तु को लेना चाहेगा तो उससे मंघर्ष होगा । फलस्वल्प युद्ध होगा रक्तपात होगा और अशांति बढ़ेगी। संसार में कोई भी व्यक्ति न कुछ साथ लेकर आता है न कुछ साथ लेकर जाता है। फिर अजित वस्तुओं पर इतनी ममता क्यों ? तृष्णा व हाय-हाय क्यों ? संघर्ष व द्वेष क्यों ? वस्तुएं सभी यहीं पड़ी रहेंगी, हमें सब यही छोड़ कर जाना है, जीवन भरणभंगुर है । न मालूम कब मृत्यु आ जाय । अतः हमें ममत्व भाव को छोड़ समभाव को अपनाना चाहिए । यही समत्व भाव भगवान महावीर का अपरिग्रहवाद है। जब यह समत्व भाव मन में आयेगा तब एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को हड़पने की कोणिण नहीं करेगा, उसे अपना उपनिवेश नहीं बनायेगा, तानाशाह बनकर वहां के जन-धन का संहार नहीं करेगा । किसी को अपने आधीन रखने की भावना उसमें जन्म नहीं लेगी। सभी स्वाधीन हैं। वे स्वतन्त्रतापूर्वक अपने व्यक्तित्व का विकास करें। ऐसी सर्वहितकारी भावना से निश्चय ही विश्वशांति को बल मिलेगा ! कार्ल मार्क्स ने भी आर्थिक वैपम्य को मिटाने के लिए वर्ग-संघर्प और अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। पर मार्क्स की विवेचना का अाधार भौतिक पदार्थ है, उसमें चेतना को नकारा गया है जब कि महावीर की विवेचना चेतनामूलक है। इसका केन्द्र-बिन्दु कोई जड़ पदार्थ नहीं, वरन् व्यक्ति स्वयं है । ४.अनेकांतवाद : अशांति के मुख्य कारण हठवादिता, दुराग्रह, और एकान्तिकता हैं। विज्ञान के विकास ने व्यक्ति को अधिक बौद्धिक और तार्किक बना दिया है। वह अपने प्रत्येक तर्क को सही मानने का दंभ भरता है। दूसरों के दृष्टिकोण को समझने का वह प्रयत्न नहीं
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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