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________________ शक्ति के महत्त्व को समझने एवं गमाजवादी अर्थ गवस्था का विमागे में गुमशान करने वाले महावीर संभवनः पहले ऐतिहामिना पुकार । समाजवादी अर्थ-व्यवस्था के संदर्भ में महान ने अपरिगाबाद एवं न्यमिक्षांना पर यहां थोड़ी सी विवेचना करे। अपरिग्रहवाद की मूल प्रेरणा : महावीर का अपरिग्रहवाद गया है-इगे समझने के लिये पाने परिसर को नमनना होगा क्योंकि जो परिसह की विरोधिनी विचारधारा है, वहीं अग्नित्यादि । town मोटे तौर पर परिग्रह का अर्थ है---धन-धान्य, मान-मनल सम्पति मादि। जो स्वयं मुद्रा हो अथवा मुद्रा में परिवर्तनीय हो वह गव परिसह कहलाता है रिन्नु महावीर एक मौलिक एवं सूक्ष्म चिन्तक थे, उन्होंने बाहर के परिसह ने आगे बढ़नार के भीनी प्रभाव को रांका तथा सबसे पहले भीतर को जगाने का प्रयास किया। बान्तरिकता को मोड़ दे देन पर बाहर को गोड़ना काठिन नहीं रहना । अतः परिगह की उन्होंने निम्न व्याख्या की :--- "मुच्छा परिन्गहोअर्थान् मूर्छा ही परिग्रह है। परिग्रह की सूक्ष्म परिभाषा में उन्होंने सम्पनि को नहीं . सम्पत्ति के प्रति मनुष्य के ममत्व को परिगह का मूल बताया । यदि मनुप्य के मन में ममत्व गाढा हे तो हकीकत में सम्पत्ति पास में नही होने पर भी उसकी गम्पत्ति पाने की लालसा अति तीव्र होगी और उसके प्रयास अधिक यानामक होंगे । आधुनिक भापा में यह पूजीपति नहीं होते हुए भी पक्का पूंजीवादी होगा। दूसरी ओर एक मनुष्य के पाम पार नम्पत्ति है लेकिन उसका ममत्व उसमें नहीं है तो उसका जीवन कीचड़ में रहे हए कमल के समान हो सकता है, जिससे वह उदारमना होगा तथा महात्मा गांधी की भाषा में नमाज की सम्पत्ति का वह दृस्टी मात्र होगा । ___ सम्पत्ति के स्वामित्व का प्रश्न इस दृष्टि ने मूर्छा या ममता की भावना पर ही टिका हुआ है। व्यक्ति स्वामित्व के समर्थक वे ही लोग होंगे जिनकी ममता प्रगाढ होती है। वे समझते है कि जो सम्पत्ति उन्हें प्राप्त है अथवा जिसे वे प्राप्त करेगे उस पर उन्हीं का स्वामित्व होना चाहिये ताकि उसका वे तथा उनकी सन्तान ही उपयोग कर सके। उत्तराधिकार का सिद्धांत भी व्यक्ति स्वामित्व को ही उपज है । व्यक्ति स्वामित्व से ही तृष्णा का घेरा बढ़ता रहता है और मानव-मन का इस कुचक्र से बाहर निकलना दुष्कर हो जाता है । महावीर ने एक ओर व्यक्ति से कहा कि वह इस सम्पत्ति के प्रति अपनी ममता को, मिटाये और त्याग की वृत्ति अपनाये तथा दूसरी ओर परिग्रह परिमाण व्रत के जरिये. उपभोग्य पदार्थो के सारे समाज में सम-वितरण या न्यायपूर्ण वितरण का अप्रत्यक्ष प्रयास किया। उनके अपरिग्रहवाद की मूल प्रेरणा व्यक्तिगत मे भी अधिक सामाजिक है ।
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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